Book Title: Hindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Author(s): Pushplata Jain
Publisher: Sanmati Prachya Shodh Samsthan

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Page 499
________________ 483 संदर्भ अनुक्रमणिका ३५०. कबीर ग्रन्थावली, पृ.१२५। ३५१. कबीर-डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृ. १८७। ३५२. लाली मेरे लाल की जित देखू तितलाल। लाली देखन मैं गई मैं भी हो गई लाल।। कबीर वचनावली-अयोध्यासिंह, पृ. ६। ३५३. मध्यकालीन हिन्दी सन्त विचार और साधना, पृ. २१६ । ३५४. कबीर-डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृ. १९१। ३५५. कबीर ग्रंथावली, पृ. ९; कबीर-डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृ. १९३। ३५६. नीर बिनु मीन दुखी क्षीर बिनु शिशु जैसे। पीर जाके औषधि बिनु कैसे रह्यो जात है। चातक ज्यों स्वाति बूंद चन्द को चकोर जैसे चन्दन की चाह करि सर्प अकुलात है।। निर्धन ज्यों धन चाहैं कामिनी को कन्त चाहै ऐसीजाके चाहताको कछु न सुहात है। प्रेम को प्रभाव ऐसौ प्रेम तहां नेम कैसौ क्रुन्दर कहत यह प्रेम ही की बात है।। सन्त सुधासागर, पृ.५९। ३५७. कबीर ग्रन्थावली, ४, २; मध्यकालीन हिन्दी सन्त-विचार और साधना, पृ. २१७। ३५८. कबीर-डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृ. ३५२-३। पिय के रंग राती रहै जग सूं होय उवास। चरनदास की वानी। प्रीति की रीति नहिंकजु राखत जाति न पांति नही कुल गारो। सुन्दरदास, सन्त सुधासागर, खण्ड १, पृ. ६३३। ३५९. पियको खोजन में चली आपहु गई हिराय। पलटू, वही, पृ. ४३५ । ३६०. विरह अगिन में जल गए मन के मैल विकार। दादूवानी, भाग १, पृ. ४३। ३६१. हमारी उमरिया खेलन की, पिय मोसों मिलि के विछुरि गयो हो। धर्मदास, सन्तवानी संग्रह, भाग २, पृ. ३७। ३६२. गुलाब साहब की वानी, पृ. २२। ३६३. कबीर, ग्रंथावली, पृ.९०। ३६४. आज परभात मिले हरिलाल। दादूवानी। ३६५. हिन्दी की निर्गुण काव्यधारा और उसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि, पृ.५८०-६०४। ३६६. भीजै चुनरिया प्रेमरस बूदन।आरत साजकी चली है सुहागिन पिय अपने को ढूढ़न।। मीरा की प्रेम साधना, पृ. २१८। ३६७. मीरा की प्रेम साधना, पृ. २२२ ।

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