Book Title: Hindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Author(s): Pushplata Jain
Publisher: Sanmati Prachya Shodh Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 461
________________ संदर्भ अनुक्रमणिका 445 १०३. कहां परदेशी कौ पतवारो, मनमाने तब चलै पंथ को, सांज गिनै न सकारो । सब कुटुम्ब छांड इतही पुनि, त्याग चलै तर प्यारो।।१।।वही,पृ.१०। १०४. वही, परमार्थपद पंक्ति १५, माझा, बधीचन्द मंदिर, जयपुर में सुरक्षित प्रति। १०५. वही, २५। १०६. ब्रह्मविलास, मोह भ्रमाष्टक। १०७. वही, पुण्यपापजगमलू पच्चीसी, ४ पृ. १९५। १०८. वही, जिन धर्म पचीसिका। १०९. ब्रह्मविलास, स्वप्नबत्तीसी ११०. वही, फुटकर कविता २ १११. "जीव तु आदि ही तैं भूल्यौ शिव गेलवा," हि. पद. सं. पृ. २२१ ११२. हिन्दी पद संग्रह, पृ. २३३ ११३. वही,पृ. २३१ ११४. परमार्थ दोहाशतक, ४-११ (रूपचन्द्र), लूणकर मन्दिर, जयपुर में सुरक्षित प्रति। ११५. हिन्दी पद संग्रह, पृ. २४५ ११६. "देषो चतुराई मोह करम की जगहें, प्रानी सब राषे भ्रम सानिकै।" मनराम विलास, मनराम, ६३, ठोलियों का दि. जैन मंदिर जयपुर, वेष्टन नं० ३९५ ११७. यह पद लूणकरजी पाण्डा मंदिर, जयपुर के गुटका नं. ११४,पत्र १७२ १७३ पर अंकित है। ११८. नाटक समयसार, सर्वविशुद्धद्वार, ९६-९७। ११९. बनारसीविलास, ज्ञानवावनी, ४३. पृ.८७। १२०. जोग अडम्बर तै किया, कर अम्बर मल्ला। अंग विभूति लगायके, लीनी मृग छल्ला। है वनवासी ते तजा, घरबार महल्ला। अप्पापर न बिछाणियांसब झूठी गल्ला।। वही, मोक्षपैडी, ८, पृ.१३२। १२१. शुद्धि ते मीनपियें पयबालक, रासभ अंग विभूति लगाये। राम कहे शुक ध्यान गहे वक, भेड़ तिरै पुनि मुड मुड़ाये।। वस्त्र विना पशु व्योम चलै खग, व्याल तिरें नित पौन के खाये। एतो सबै जड़रीत विचक्षन ! मोक्ष नहीं विन तत्त्व के पाये।। (ब्रह्मविलास, शत अष्टोत्तरी, ११, पृ.१०)

Loading...

Page Navigation
1 ... 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516