Book Title: Hindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Author(s): Pushplata Jain
Publisher: Sanmati Prachya Shodh Samsthan

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Page 483
________________ 467 ४१. ४२. ४७. संदर्भ अनुक्रमणिका ब्रह्मसूत्र भाष्य, २.१.९, १.१.२१, २.१.२८। अद्वैत ब्रह्म सत्यम् जगत् इदमनृत मायया भासमान। जीवो ब्रह्म स्वरूपो अहमिति ममचेत् असित देहेभिमान। धृत्वा ब्रह्ममहमस्म्नुयभवमुदिते नष्ट कर्माभिमानात्। माया संसार मुक्ते इह भवति सदा सच्चिदानन्द रूपः । भक्तिकाव्य में रहस्यवाद, पृ. ६१। राघवदूत सोइ सैतानू। माया अलाउद्दीन सुलतानु।। जायसी ग्रन्थावली, पृ. ३०१। वही, पृ. २२४-२२६। वही, पृ. २०५। गोपाल तुम्हारी माया महाप्रबल निहिं सब जग बस कीन्हों, सूरसागर पद, ४४। माधौजू नैकु हटको गाइ। भ्रमत निसि-वासन अपथ-पथ, अगह गहिं-गहिं जाइ। धुधिन अति न अधाति कबहूं, निगम दुमदलि खाइ। अष्ट इस-घट नीर अंचवति तृषा तऊन बुझाइ। सूरसागर, पद ५६। सूरसागर, ४२-४३, तुलनार्थ दृष्टव्य, मलूकदास, भाग २, पृ. ९, पलटू, संतवाणी संग्रह, भाग २, पृ. २३८। मीराबाई, पृ. ३२७-२८। तुलसी, सं. उदयभानुसिंग, पृ. १७८-९। तुलसी ग्रन्थावली, पृ.१००। माया छाया एक सौ विरला जाने कोय। आता के पीदे फिरे सनमुख भागै सोय। संत वाणी संग्रह, भाग १, पृ. ५७। माया छाया एक है घटै बट्टै छिन माहि। इनकी संगति जे लगै तिनहि कटी सुख नाहिं।।बनारसीविलास, पृ.७५ । माया की सवारी सेज चादरि कलपना......नाटक समयसार, निर्जराद्वार १४, पृ.१३८। माया तो ठगिनी भई ठगत फिरै सब देस, संतवाणी संग्रह, भाग १, पृ. ५७। कबीर-डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी, पद्य १३४, पृ. ३११। ५०. ५२. ५३. ५४. ५५. ५६.

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