Book Title: Hindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Author(s): Pushplata Jain
Publisher: Sanmati Prachya Shodh Samsthan

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Page 481
________________ 465 ai sin x w ý via संदर्भ अनुक्रमणिका अष्टम परिवर्त उत्तराध्ययन, पृ.१०,१५। संत वाणी संग्रह, भाग-२, पृ.४। हिन्दी पद संग्रह, पृ.७७। 'ऐसी यह संसार है जैसा सेमर फूल। दिन दस के व्यवहार में झूठ रे मन भूल।।' कबीर साखी संग्रह, पृ. ६१। यह संसार सेंवल के फूल ज्यौं तापर तू जिनि फूलै, दादूवानी, भाग-२, पृ.१४। सब जग छैली काल कसाई, कर्द लिए कंठ काटे। पच तत्त्व की पंच पंखरी खण्ड-खण्ड करिवाटै।।दादूवानी, भाग-१, पृ. २२९। जायसी का पद्मावतः काव्य और दर्शन डॉ. गोविन्द त्रिगुणायत, पृ. २१३-२१४। सूरसागर । सन्त वाणी संग्रह, भाग-२, पृ. ४६। देखिये, इसी प्रबन्ध का द्वितीय-पंचम परिवर्त, वृहद् जिनवाणी संग्रह, बारह भावना भूधरदास, बुधजन, आदि कवियों की। जोवन गृह गो धन नारी, हय गयजन आज्ञाकारी। इन्द्रीय भोग छिन थाई, सुरधनुचपला चपलाई।। छहढाला, ५-३। विनय पत्रिका, १८८. वां पद । सूरसागर, ३३५। हिन्दी पद संग्रह, पृ.१३३। वही, पृ. १५७। वही, पृ.७०। कविता रत्न, पृ. २४। सूरसागर, १११०। हिन्दी पद संग्रह, पृ.५। संत वाणी संग्रह, भाग २, पृ. २१ । संत वाणी संग्रह, भाग २, पृ. ६४। १२. १४. १५. १६. १९. २०. २१.

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