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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना जिनराजसूरी गीत, ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, २, ७, पृ. १७४-१७६ । तेरहपंथी मंदिर जयपुर, पद संग्रह, ९४६, पत्र ६३-६४।। ता जोगी चित लावों मोरे बाला।। संजम डोरी शील लंगोटी घुलघुल, गाठ लगाले मोरे बाला। ग्यान गुदडिया गल विच डाले, आसन दृढ़ जमावे।।१।। क्षमा की सौति गलै लगावै, करुणा नाद बजावे मोरे बाला। ज्ञान गुफा में दीपकजो के चेतन अलख जगावै मोरे बाला।। हिन्दी पद संग्रह, पृ. ९९। गीत परमार्थी, परमार्थ जकड़ी संग्रह, जैन ग्रन्थ रत्नाकार कार्यालय, बम्बई। गुरु पूजा ६, वृहज्जिनवाणी संग्रह, मदानगंज, किशनगढ़, सितम्बर, १९५५, पृ. २०१। ज्ञानचिन्तामणि, ३५, बीकानेर की हस्तलिखित प्रति। सुगुरु सीष, दीवान बधीचन्द मंदिर, जयपुर, गुटका नं, १६१। गुरु बिन भेद न पाइय, को परु को निज वस्तु। गुरु बिन भवसागर विषइ, परत गहइ को हस्त।।अपभ्रंश और हिन्दी में जैन रहस्यवाद, पृ. ९७। मनकरहारास, आमेरशास्त्र भण्डार, जयपुर की हस्तलिखित प्रति आनदंघन बहोत्तरी, ९७। मधुविन्दुक की चौपाई; ५८, ब्रह्मविलास, पृ. १३०। ब्रह्मविलास, पृ. २७०। गीत परमार्थी, हिन्दीजैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. १७१ । गुरु समान दाता नहिं कोई। भानु प्रकाश न नासत जाको, सो अंधियारा डारे खोई।।१।। मेघ समान सबन पैबरसै, कछु इच्छा जाके नहिं होई। नरक पशुगति आगमाहितै सुरग मुकत सुख थापै सोई।।२।। तीन लोक मंदिर में जानौ, दीपकसम परकाशक लोई। दीपतलें अंधियारा भरयौ है अन्तर बहिर विमल है जोई।।३।। तारन तरन जिहाज सुगुरु है, सब कुटुम्ब डोवै जगतोई। द्यानत निशिदिन निरमल मन में, राखो गुरु पद-पंकज दोई।।४।। द्यानत पद संग्रह, पृ.१०। हिन्दी पद संग्रह, पृ. १२६-१२७, १३३। भूधर विलास, पृ.४।
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