Book Title: Hindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Author(s): Pushplata Jain
Publisher: Sanmati Prachya Shodh Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 467
________________ संदर्भ अनुक्रमणिका ६६. ब्रह्मविलास, पुण्यपचीसिका, १३,२३ । ६७. वही, १४-१५, पृ. ११ । ६८. ६९. ७०. नाटक समयसार, उत्थानिका, ३६-३७; नाममाला भी देखिये । जैन शोध और समीक्षा, पृ. ७२ । 451 तत्त्वसार दूहा-भट्टारक शुभचन्द्र, ९१; हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. ७८ । ७१. नाटक समयसार, जीवद्वार, ९। ७२. नाटक समयसार, उत्थानिका, २० । ७३. बनारसीविलास, ज्ञानवावनी, ४ । ७४. वही, १६-३०। ७५. वही, ध्यानवत्तीसी, १ । ७६. चेतन पुद्गल सौं मिलें, ज्यों तिल में खलि तेल । प्रगट एक से देखिये, यह अनादि को खेल । ।४ । । ज्यों सुवास फल फूल में, दही दूध में घीव । पावक काठ पाषाण में, त्यां शरीर में जीव ।।७।। वही. अध्यात्मबत्तीसी ४-७, पृ. १४३ । राजस्थानी जैन सन्त, व्यक्तित्त्व एवं कृतित्त्व, पृ. १७४ । ७७. ७८. बनारसीविलास, शिवपच्चीसी, १-२४। ७९. नाटक समयसार, ४, पृ. ५ जीवद्वार २; ब्रह्मविलास - भैया भगवतीदास, सिज्झाय पु. १२५, सिद्ध चतुर्दशी, १४१ । ८०. हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. ३५१ । ८१. बनारसीविलास, अध्यात्मपद पंक्ति, १६, पृ. २३३। ८२. बनारसीविलास अवस्थाष्टक, पृ. १८५; छहढाला- दौलतराम ३-४-६; अध्यात्म पंचासिका दोहा-द्यानतराय, हस्तलिखित ग्रन्थों का पन्द्रहवां त्रैवार्षिक विवरण (खोज विवरण) सन् १९३२-३४, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी। ८३. अपभ्रंश और हिन्दी में रहस्यवाद, पृ. १०८; बह्मविलास (भैया भवगतीदास), परमात्मछत्तीसी, २-५ पृ. २२७; धर्मविलास - द्यानतराय, अध्यात्म पंचासिका, पृ. १९२ । ८४. 'निर्गुण रूप निरंजन देवा, सगुण स्वरूप करें विधिसेवा' ।। बनारसीविलास, शिवपच्चीसी, ७, पृ. १५० ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516