Book Title: Hindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Author(s): Pushplata Jain
Publisher: Sanmati Prachya Shodh Samsthan

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Page 452
________________ 436 हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना तृतीय परिवर्त १. प्राचीन काव्यों की रूप परम्परा-अगरचंद नाहटा, भारतीय विद्या मंदिर शोध प्रतिष्ठान, बीकानेर १९६२। २. पार्श्वपुराण, ८.२३. पृ. ६५। ३. नाटक समयसार, संवरद्वार, पृ.१० विनयचन्द्र की चूनड़ी, पहला ध्रुवक। ५. परमहंस रास, खंडेलवाल दि० जैन मन्दिर, उदयपुर में सुरक्षित है। हिन्दीजैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. १०९ ७. बनारसी विलास, अध्यातम फाग, १०-११, पृ. १५५ । हिन्दीजैन भक्ति काव्य और कविपृ.८७ ९. नेमि-राजुल बारहमासा, पृ. १४ १०. नाटक समयसार, सर्वविशुद्धिद्वार, १३३-१३४ ११. हिन्दीजैन साहित्य परिशीलन, पृ. २३९ १२. वही। चतुर्थ परिवर्त १. सर्वधातुभ्योऽसुन् (उणादिसूत्र-चतुर्थपाद)। २. तत्रभवः दिगादिभ्यो यत् (पाणिनि सूत्र, ४.३.५३.५४)। विविक्त विजनः छन्ननिहः शलाकास्तथा रहः । रहस्योपांशु चालिडे रहस्यम् तद्भवे त्रिषु।। अमरकोश २.८.२२-२३ । अविधान चिन्तामणि कोश, ७४१, गुह्ये रहस्यम्...अभिधान चिन्तामणिकोश, ७४२. सूय, १.४.१८; भगवती, २.२४, ३७.३८; ९.१३७; १५.५६, १५७; १८.४०; नाया, १.१ १६,४४, १.५.९०; १.७.६.४२; १.८ १३९; १.१४.७०; उवासक, १.१३ ५७.५९; पण्हा, ६०२; देखिए, आग्रम शब्दकोश, पृ. ६०९। 6. Bonquet, A., C., Comparative Religion, Pelican Series 1953, P.286.

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