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रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन 371
गुरु के इस महत्व को समझकर ही साधक कवियों ने गुरु के सत्संग को प्राप्त करने की भावना व्यक्त की है। परमात्मा से साक्षात्कार कराने वाला ही सद्गुरु है। सत्संग का प्रभाव ऐसा होता है कि वह मजीठ के समान दूसरों को अपने रंग में रंग लेता है। काग भी हंस बन जाता है।"रैदास के जन्म-जन्म के पाश कट जाते हैं।" मीरा सत्संग पाकर ही हरि चर्चा करना चाहती है। सत्संग से दुष्ट भी वैसे ही सुधर जाते हैं जैसे पारस के स्पर्श से कुधातु लोहा भी स्वर्ण बन जाता है। ५१ इसलिए सूर दुष्ट जनों की संगति से दूर रहने के लिए प्रेरित करते हैं।१५२
मध्यकालीन हिन्दी जैन कवियों ने भी सत्संग का ऐसा ही महत्त्व दिखाया है। बनारसीदास ने तुलसी के समान सत्संगति के लाभ गिनाये हैं -
कुमति निकद होय महा मोह मंद होय, जनमगै सुयश विवेक जगै हियसों । नीति को दिव्य होय विनैको बढाव होय, उपजे उछाह ज्यों प्रधान पद लियेसों।। धर्म को प्रकाश होय दुर्गति को नाश हाये, बरते समाधि ज्यों पियूष रस-पिये सों । तोष परि पूर होय, दोष दृष्टि दूर होय, एते गुन होहिं सह संगति के किये सौं ।।१५३
द्यानतराय कबीर के समान उन्हें कृतकृत्य मानते हैं जिन्हें सत्संगति प्राप्त हो गयी है। भूधरमल सत्संगति को दुर्लभ मानकर नरभव को सफल बनाना चाहते हैं -
प्रभु गुन गाय रे, यह ओसर फेर न पाय रे ।। मानुष भव जोग दुहेला, दुर्लभ सतसंगति मेला । सब बात भली बन आई, अरहन्त भजौ रे भाई ।।१५५