Book Title: Hindi Gujarati Dhatukosha
Author(s): Raghuvir Chaudhari, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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पूर्वकार्य का अध्ययन " उनके (पाणिनि के) पूर्व शाकटायन ने भी यह स्वीकार किया था कि शब्द धातुओं से बनते हैं, किन्तु उन्होंने अपने मत को आग्रह का रूप दे डाला था और व्युत्पन्न एवं अव्युत्पन्न सभी प्रकार के शब्दों को धातु-प्रत्ययों से सिद्ध करने का क्लिष्ट प्रयत्न किया था, जिसके कुछ उदाहरण यास्क ने अपने निरुक्त में उद्धृत किये हैं. पाणिनि दुराग्रही नहीं, समन्वयवादी थे... लोक में शब्दों का भण्डार बहुत बड़ा है, जिसमें अनेक शब्द ऐसे भी हैं, जिनमें धातु-प्रत्यय की दाल नहीं गलती."28 ___डा. अनन्त चौधरी ने हिन्दी के प्रमुख व्याकरणों का विस्तृत परिचय देते हुए क्रिया-धातु से सम्बन्धित चर्चा का भी जिक्र किया है. हिन्दी वैयाकरणों ने धातुओं का वर्गीकरण अलगअलग ढंग से किया है परन्तु सभीने क्रिया-मृल को ही धातु मानना उचित समझा है. प्रमुख व्याकरणकारों द्वारा दी गई धातु की कुछ और परिभाषाएँ देखना रसप्रद होगा :
'वाक्य अर्थात् बात क्रिया से पूरी होती है और क्रिया धातु से बनती है. धातु उसे कहते हैं, जिसके अर्थ से देह वा मन का कुछ व्यापार अर्थात् हिलना-चलना आदि पाया जाय..१७
‘क्रिया से मूल को धातु कहते हैं और उसके अर्थ से व्यापार का बोध होता है.' 80
पं. श्रीलाल, विलियम एथरिंगरन के ये उद्धरण पं. कामताप्रसाद गुरु, पं. किशोरीलाल वाजपेयी और दुनीचन्द के उन इस रणों की तरह प्रायः एक ही विचार को दोहराते हैं. इन समर्थनों से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि और शन्द अधातुज हो सकते हैं परन्तु क्रियाएँ तो धातुज ही हैं. ४. गुजराती - धातु-चर्चा
गुजराती व्याकरणों में परिभाषाएँ देने की अपेक्षा विश्लेषण-वर्गीकरण करने की परंपरा अधिक विकसित हुई है. 1921 में प्रकाशित नरसिंहराव दिवेटिया कृत 'गुजराती लेंग्वेज एण्ड लिटरेचर' में 'द कोर्पस आफ गुजराती वर्बल रूट - इट्स फार्मेशन' नामक एक उत्सर्ग दिया गया गया है जिसमें धातुओं का ऐतिहासिक तथा स्वरूपगत वर्गीकरण सोदाहरण किया गया है. डा. टी. एन. दवे की पुस्तक 'द लेंग्वेज आफ गुजरात' में गुजराती क्रिया तथा उसके रूपों की भाषाविज्ञान तथा व्याकरण की दृष्टि से चर्चा की गई है. टेलर, क. प्रा. त्रिवेदी, म. झवेरी, के. का. शास्त्री, ह. भायाणी, ज्योर्ज कार्डोना, जयंत कोठारी, योगेन्द्र व्यास आदि के गुजराती व्याकरण विशेष उल्लेखनीय हैं. इनमें से कुछ विद्वानों ने नई स्थापनाएँ की हैं तो कुछ ने सुलभ सामग्री का शास्त्रीय विनियोग किया है.
श्री के. का. शास्त्री अन्य विद्वानों की तरह धातु को वैयाकरण की कल्पना बताकर कहते हैं कि यास्क और पाणिनि ने स्तोत्र धातुएँ दी हैं. वे लिखते हैं : ___" वस्तुस्थितिए भाषाना बधा ज शब्द कई क्रियावाचक धातुओमाथी न होई शके; डित्थ डपित्थ वगेरे यहच्छा शब्दोनु अस्तित्व व्याकरणकारो स्वीकारे छे अने पारकी भाषाओना शब्द पण उछीना लेवाया होय छे ... आपणने आ रीते जे क्रियापदो मळ्यां छे तेओने ते ते क्रियापदना मूळ धातु कहिये छिये."1
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