Book Title: Hindi Gujarati Dhatukosha
Author(s): Raghuvir Chaudhari, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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आ. विश्लेषण तथा निष्कर्ष
२०९
कि हिन्दी के साथ अन्य कौन-सी आधुनिक भारतीय आर्यभाषा अधिकाधिक निकटता रखती है ? बिना अध्ययन के भी कोई उत्साहमूर्ति इसका जवाब दे दे, परन्तु वह केवल राय होगी जब कि सामग्री के साथ अध्ययन करने के फलस्वरूप जो प्राप्त होगा वह निष्कर्ष होगा-सिद्धान्त का प्रतिपादन होगा।
प्रस्तुत अध्ययन के तुलनात्मक तथा ऐतिहासिक अभिगम के कारण सूचित हुआ कि मूल संस्कृत की धातुसामग्री का कितना अंश सुरक्षित रहा। धातुकोश में हिन्दी की सभी सुलभ धातुएँ देने के फलस्वरूप वृद्धिलोप तथा परिवर्तन की प्रक्रिया से गुजरी सारी सामग्री सामने आ गई। धातुओं के आगमन की घटना से तो भाषा के विद्वान अच्छी तरह से परिचित थे, जहाँ कहीं बहस का मौका आया, पाँच-दस अरबी-फारसी धातुएँ गिना देते थे। इनकी संख्या इतनी बड़ी है यह तथ्य इस अध्ययन के पलस्वरूप सामने आया! अनुकरणात्मक धातुओं का इतनी बड़ी संख्या में अस्तित्व, इनका तथा देशज धातुओं का उल्लेखनीय संख्या में पूर्ववर्ती होना ये तथ्य भी विशेष रूप से स्पष्ट हुए।
आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के उद्भव और विकास की एक रूपरेखा विद्वनों के पास है अवश्य, किन्तु कौन-सी भाषा कब किससे अलग हुई इसका प्रामाणिक इतिहास हमारे पास नहीं है। डा. प्रबोध पंडित ने ध्वनिमूलक अध्ययन के द्वारा संस्कृत से कब कौन-सी प्राकृत अलग हई इसके क्रम का निर्देश किया है सामग्री से सिद्धान्त और सिद्धान्त से तथ्य तक पहुँचा जा सकता है। यहाँ केवल धातुओं का तुलनात्मक-ऐतिहासिक अध्ययन किया गया, भविष्य में समग्र शब्दराशि के ध्वनि, रूप तथा अर्थमूलक एवं व्याकरण-विषयक अध्ययनों के द्वारा हम सभी आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के क्रमिक इतिहासेां का साक्षात्कार कर सकेंगे। भाषा भले ही असंलक्ष्य रूप से आगे बढ़ती रहे, हम भूतकाल में जाकर इसका पुननिर्माण करेंगे !
टिप्पणी
लं
1. पृ. 67 भोजपुरी और हिन्दीका तुलनात्मक अध्ययन 2. पृ. 9 हिन्दी में देशज शब्द
पृ. 74 गुजराती भाषाना इतिहासनी केटलीक समस्याओं 4. पृ. 136 हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग
पृ. 205-6 टेस्टिंग लिंग्विस्टिक हाइपोथेसिस 6. पृ. 76-77 गुजराती भाषाना इतिहासनी केटलीक समस्याओं 7. पृ. 309 न्यू होराइजन इन लिंग्विस्टिक्स 8. पृ. 107 हिस्टोरिकल लिग्विस्टिक्स : एन इण्ट्रोडक्शन 9. दे. प्राकृत भाषा
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