Book Title: Hindi Gujarati Dhatukosha
Author(s): Raghuvir Chaudhari, Dalsukh Malvania, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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पूर्वकार्य का अध्ययन भाषक समान रूप से सतर्क नहीं होते, बल्कि उनके अवबोध में बड़ा अंतर होता है. अंग्रेजीभाषी समुदाय में यह अवबोध कुछ असामान्य-सा लगेगा, जब कि कहा जाता है कि रशियन भाषाभाषी अपनी भाषा में धातु तथा अंग के कार्य के बारे में बड़े सतर्क होते हैं. किसी पूर्वनिर्धारित सिद्धान्त के आधार से धातु तथा अंग के लक्षण निश्चित नहीं किए जा सकते. भाषा-विशेष की संरचना के संदर्भ में ही सर्वाधिक सफलता से इनका विश्लेषण किया जा सकता है. हमारे मानदंड भाषा-विशेष के अनुसार बदलते रहेगे.
अब हम 'डिक्शनरी ऑफ लिंग्विस्टिक्स' में दी गई क्रिया और धातु की परिभाषाएँ देखें :
Verb is that part of speech which expresses an action, a process, a state or condition or mode of being.30
-क्रियापद घाणी का वह अंश है जो क्रिया, व्यापार, सत्ता की अवस्था, स्वरूप या प्रकार को व्यक्त करे.
धातु की पाश्चात्य परिभाषा भारतीय दृष्टि से मिलती-जुलती है. केवल क्रियारूप की नहीं परन्तु किसी भी शब्दरूप की मूल इकाई को लक्ष्य किया गया है :
The ultimate constituent element common to all cognate words, that is the element of a word which remains after the removal of all flexional endings formatives etc The root is usually present in all members of a group of words relating to the same idea and is thus capable of being considered as the ultimate semantic vehicle of a given idea or concept in a given language. 31
इसका तात्पर्य है :
- 'शब्दों की वह अन्तिम इकाई ही धातु है जो प्रत्यय आदि को निकालने पर समान अर्थों के शब्दों में रहती है. निष्कर्ष यह है कि धातु यह ध्वनि-समुदाय है जिसके खण्ड नहीं हो सकते और जिसके साथ प्रत्यय जोड़कर 'पद' निष्पन्न किया जाता है." ___ आधुनिक पाश्चात्य भाषाविज्ञान ने भाषा-परिवर्तन के संदर्भ में भी क्रियावाचक धातुओं की चर्चा की है, और शास्त्रीय सूक्ष्मताएँ सिद्ध की हैं. उनका निर्देश करना भी एक बहुत बड़े क्षेत्र में प्रवेश करना होगा. यहाँ इतना कहना पर्याप्त होगा कि प्राचीन भारतीय वैयाकरणों की उपलब्धियों को आत्मसात् करने के साथ हम गौरव भी ले सकते हैं और आधुनिक पाश्चात्य भाषाविज्ञान से हमें अभी बहुत कुछ सीखना है. ३ हिन्दी-धातुचर्चा ... डा. धीरेन्द्र वर्मा ने कहा है कि धातु की धारणा वैयाकरणों के मस्तिष्क की उपज है, भाषा का स्वाभाविक अंग नहीं है. डा. वर्मा सभी शब्दरूपों के मूल अंश को नहीं, केवल क्रिया के उस अंश को 'धातु' कहते हैं जो उसके सभी रूपान्तरों में पाया जाता है.
"जैसे चलना, चला, चलेगा, चलता आदि समस्त रूपों में 'चल' अंश समान रूप से मिलता है, अतः 'चल्' धातु मानी जायगी."36
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