Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan Author(s): Nemichandra Shastri Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa MujjaffarpurPage 12
________________ आमुख आचार्य हरिभद्र बहुमुखी प्रतिभाशाली लेखक हैं । दर्शन जैसे गूढ़ विषय का निरूपण करने के साथ कथा जैसी सरस साहित्य - विधा का प्रणयन करना उनकी अपनी विशेषता है । इनके विशाल साहित्य समुद्र से हमने प्राकृत कथा - साहित्य को ही शोध के लिये ग्रहण किया है । हमारा विश्वास है कि कथा - साहित्य में जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति होती है । लेखक अपने पात्रों के माध्यम से जीवन-दर्शन की आवश्यक और उपयोगी बातों का निरूपण कर देता है । हरिभद्र सूरि की प्राकृत भाषा में लिखी गयीं निम्न कथाकृतियां हैं, जिनका आलोचन इस शोध प्रबन्ध में किया गया है : १ - - समराइच्चकहा । २ -- धूर्त्ताख्यान । ३ - - दशवेकालिक की हारिभद्रवृत्ति । ४--उपदेशपद । शोध के लिये विषय ग्रहण करते समय हमें ऐसा लग रहा था कि संभवत: सामग्री पूरी नहीं मिल सकेगी, किन्तु विषय में प्रवेश करने पर यह अनुभव हुआ कि यह विषय विस्तृत हो गया है । समराइच्चकहा के छठवें और आठवें भवों में से किसी भी एक भव पर अनुसन्धान कार्य किया जा सकता था । यतः इन दोनों भवों में कथातत्त्वों की दृष्टि से प्रचुर सामग्री वर्तमान है, साथ ही भारतीय संस्कृति और जनजीवन के विभिन्न रूप भी उपलब्ध हैं । श्रतः उक्त तथ्यों और सामग्री के चयनमात्र से एक अच्छा शोध प्रबन्ध लिखा जा सकता था । प्रस्तुत शोध प्रबन्ध दस प्रकरणों में विभक्त है । प्रथम प्रकरण में प्राकृत कथानों के उद्भव और विकास पर प्रकाश डाला गया है । इस प्रकरण में निम्न विशेषताएँ दृष्टिगोचर होंगी : -- १ - - हरिभद्र को केन्द्र मानकर प्राकृत कथा साहित्य के विकास का युगों में विभाजन । २ -- प्रत्येक युग की सामान्य कथा प्रवृत्तियों का आलोचनात्मक विवेचन । ३ -- तत्तत् युगीन कृतियों का आलोचनात्मक परिशीलन और मूल्यांकन । ४ - - हरिभद्र का समय निर्णय । ५ -- प्राकृत कथा साहित्य की उपलब्धियां । द्वितीय प्रकरण है "प्राकृत कथाओं के विविध रूप और उनका स्थापत्य' । इसमें प्राकृत कथाओं के विविध स्वरूपों के विवेचन के साथ प्राकृत कथा शिल्प पर विचार किया गया है । प्राकृत भाषा में अलंकार ग्रन्थ उपलब्ध न होने से प्रयोगात्मक पद्धति का अवलम्बन लेकर कथा स्वरूप का विवेचन किया है । इस प्रकरण में निम्नांकित विशेषताएँ स्पष्ट लक्षित होंगी : १ - - प्राकृत साहित्य में उल्लिखित कथा भेदों का लक्षण सहित स्वरूप विवेचन । २ -- कथोत्थप्ररोह, प्ररोचन शिल्प आदि की स्थापना और निरूपण । ३ - - प्राकृत Jain Education International कथाशिल्प का स्वरूप निर्धारण और आलोचना के मानदण्डों को प्रतिष्ठा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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