Book Title: Haribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

Previous | Next

Page 11
________________ की अनेक बातों की जानकारी मुझे प्राप्त हुई है। आपने कई दिन समराइच्चकहा की कथाओं पर आलोचनात्मक चर्चा प्रस्तुत कर मेरे ज्ञान का संवर्द्धन किया है। अतः मैं प्रतिभामूत्ति आदरणीय पांडेयजी के प्रति अपना हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं। अपने कालेज के हिन्दी विभाग के यशस्वी विद्वान् मित्र प्रो० श्री रामेश्वरनाथ तिवारी से नायाधम्मकहानो की कथाओं के शिल्प-गठन पर विचार-विनिमय द्वारा सहयोग प्राप्त हुआ है। अतएव में मित्र तिवारीजी के प्रति भी अपना आभार प्रकट करता हूं। इस कार्य में डॉ० कुमार विमल सिंह, पटना कालेज, पटना एवं डॉ. रमेशकुन्तल मेघ, चण्डीगढ़ का सहयोग भी भुलाया नहीं जा सकता है । अत : उक्त दोनों महानुभावों के प्रति भी कृतज्ञता विज्ञापित करता हूँ। एच० डी० जैन कालेज, आरा के तत्कालीन संस्कृत-प्राकृत विभागाध्यक्ष आदरणीय डॉ० आर० एम० दास से प्रेरणा एवं परामर्श समय-समय पर प्राप्त होता रहा, अतः उनके प्रति भी अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। आयुष्मान् श्रीराम तिवारी, एम० ए० एवं श्री प्रेमचन्द जैन, एम० ए० ने कथानों के सामाजिक अध्ययन करने एवं प्रतिलिपि आदि में सहयोग प्रदान किया है। अतएव में उनके अभ्युदय की कामना करता हुआ उन्हें हृदय से आशीर्वाद देता हूं। शोध-प्रबन्ध के मुद्रण के समय प्रूफ-संशोधन में मित्र डॉ० राजाराम जैन से सहयोग प्राप्त हुआ है। अतएव उनका भी मैं उपकृत हूं। __ शोध-प्रबन्ध के मुद्रण का श्रेय डॉ० एन० टाटिया, निदेशक, प्राकृत रिसर्च इन्स्टीच्यूट को है, जिनकी सत्कृपा से इस शोध-प्रबन्ध को मुद्रण का अवसर मिला है। अन्त में मैं इस महदनुष्ठान में सहयोग प्रदान करनेवाले समस्त महानुभावों के प्रति अपना हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं। इस कृति में जो कुछ भी अच्छा है वह गुरुजनों का ऋण है और जितनी भी त्रुटियां हैं वे सब मेरी अल्पज्ञता के परिणाम हैं। श्रुतपंचमी वि० सं० २०२२ नेमिचन्द्र शास्त्री, एच० डी० जैन कालेज (मगध विश्वविद्यालय), पारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 462