Book Title: Gunsthan Vivechan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 17
________________ _____३३ गुणस्थान विवेचन का स्वभाव मीठा होता है, उसीप्रकार कर्मों के अपने-अपने स्वभाव को प्रकृति बंध कहते हैं। • कर्मरूप परिणमित होनेयोग्य पुद्गलों का ज्ञानावरणादि मूल प्रकृतिरूप तथा उसके भेद-उत्तरप्रकृतिरूप परिणमन होने का नाम प्रकृति बंध है। ११. प्रश्न : प्रदेश बंध किसे कहते हैं ? उत्तर : जीव के साथ प्रति समय जितने पुद्गल परमाणु कर्मरूप परिणमन करते हैं, उनके प्रमाण अर्थात् संख्या को प्रदेश बंध कहते हैं। १२. प्रश्न : स्थिति बंध किसे कहते हैं ? उत्तर : ज्ञानावरणादि कर्मरूप परिणमित पुद्गल स्कंधों का आत्मा के साथ एकक्षेत्रावगाहस्थितिरूप कालावधि के बंधन को स्थिति बंध कहते हैं। १३. प्रश्न : अनुभाग बंध किसे कहते हैं ? उत्तर : ज्ञानावरणादि कर्मों के रस विशेष को अथवा फल प्रदान करने की शक्ति विशेष को अनुभाग बंध कहते हैं। १४. प्रश्न : सत्त्व अथवा सत्ता किसे कहते हैं ? उत्तर : अनेक समयों में बंधे हुए कर्मों का विवक्षित काल तक जीव के प्रदेशों के साथ अस्तित्व होने का नाम सत्त्व अथवा सत्ता है। १५. प्रश्न : उदय किसे कहते हैं ? उत्तर : कर्म की स्थिति पूरी होते ही कर्म के फल देने को उदय कहते हैं। १६. प्रश्न : उदीरणा किसे कहते हैं ? उत्तर : जीव के परिणामों के निमित्त से कर्म की स्थिति पूरी हुए बिना ही कर्म के उदय में आकर फल देने को उदीरणा कहते हैं। .जीव के परिणामों के निमित्त से कर्म के उदयावली के बाहर के निषेकों का उदयावली के निषेकों में आ मिलना उदीरणा है। • जिस कर्म का उदयकाल नहीं था, उस कर्म के उदयकाल में आने को उदीरणा कहते हैं। • अकालपाक को उदीरणा कहते हैं। महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर १७. प्रश्न : उत्कर्षण किसे कहते हैं ? उत्तर : जीव के परिणामों का निमित्त पाकर कर्म के स्थिति-अनुभाग के बढ़ने को उत्कर्षण कहते हैं। १८. प्रश्न : अपकर्षण किसे कहते हैं ? उत्तर : जीव के परिणामों का निमित्त पाकर कर्म के स्थिति-अनुभाग के घटने को अपकर्षण कहते हैं। १९. प्रश्न : संक्रमण किसे कहते हैं ? उत्तर : विवक्षित कर्म प्रकृतियों के परमाणुओं का सजातीय अन्य प्रकृतिरूप परिणमन होने को संक्रमण कहते हैं। जैसे - विशुद्ध परिणामों के निमित्त से पूर्वबद्ध असाता वेदनीय प्रकृति के परमाणुओं का साता वेदनीयरूप तथा साता वेदनीय के परमाणुओं का असाता वेदनीयरूप परिणमन होना। . इसमें भी इतनी विशेषता है कि १. मूल प्रकृतियों में परस्पर संक्रमण नहीं होता। २. चारों आयुओं में आपस में संक्रमण नहीं होता। ३. मोहनीय का उत्तरभेद-दर्शनमोहनीय का चारित्रमोहनीय में संक्रमण नहीं होता। ४. दर्शनमोहनीय के भेदों में एवं चारित्रमोहनीयकर्म के भेदों में परस्पर संक्रमण होता है। २०. प्रश्न : उपशांत किसे कहते हैं ? उत्तर : जो कर्म उदय में नहीं आ सके. सत्ता में रहे. वह उपशांत कहलाता है। . सत्ताविर्षे तिष्ठता अपनी-अपनी स्थिति को धरै हैं ज्ञानावरणादिक कर्म का द्रव्य जा विषै, जाकी जावत् काल उदीरणा न होय तावत् काल उपशांत करण कहिए। • उपशांत करण आठों कर्मों में होता है। • उपशांत अवस्था को प्राप्त कर्म का उत्कर्षण, अपकर्षण और संक्रमण हो सकता है; किन्तु उसकी उदीरणा नहीं होती। कर्मों की दस अवस्थाओं में उपशांतकरण है। २१. प्रश्न : उपशम किसे कहते हैं ? उत्तर : आत्मा में कर्म की निजशक्ति का कारणवश प्रगट न होना,

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