Book Title: Gunsthan Vivechan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 70
________________ १३८ गुणस्थान विवेचन परस्पर परिहार लक्षण विरोध इष्ट ही है; क्योंकि यदि गुणों का एक दूसरे का परिहार करके अस्तित्व नहीं माना जावे तो उनके स्वरूप की हानि का प्रसंग आता है। परन्तु इतने मात्र से गुणों में सहानवस्थालक्षण विरोध संभव नहीं है। ____ यदि नाना गुणों का एकसाथ रहना ही विरोधस्वरूप मान लिया जावे तो वस्तु का अस्तित्व ही नहीं बन सकता है; क्योंकि वस्तु का सद्भाव अनेकान्त-निमित्तक ही होता है। जो अर्थक्रिया करने में समर्थ हैं, वह वस्तु है। परन्तु अर्थक्रिया एकान्त पक्ष में नहीं बन सकती है। क्योंकि अर्थ क्रिया को यदि एकरूप माना जावे तो पुनः पुनः उसी अर्थक्रिया की प्राप्ति होने से और यदि अनेकरूप माना जावे तो अनवस्था दोष आने से एकान्त पक्ष में अर्थक्रिया के होने में विरोध आता है। पूर्व के कथन से चैतन्य और अचैतन्य के साथ भी अनेकान्त दोष नहीं आता है; क्योंकि चैतन्य और अचैतन्य ये दोनों गुण नहीं हैं। जो सहभावी होते हैं, उन्हें गुण कहते हैं। परन्तु ये दोनों सहभावी नहीं है; क्योंकि बंधरूप अवस्था के नहीं रहने पर चैतन्य और अचैतन्य ये दोनों एकसाथ नहीं पाये जाते हैं। दूसरे विरुद्ध दो धर्मों की उत्पत्ति का कारण यदि समान अर्थात् एक मान लिया जावे तो विरोध आता है; परन्तु संयमभाव और असंयमभाव इन दोनों को एक आत्मा में स्वीकार कर लेने पर भी कोई विरोध नहीं आता है; क्योंकि उन दोनों की उत्पत्ति के कारण भिन्न-भिन्न है। __ संयमभाव की उत्पत्ति कारण त्रसहिंसा से विरतिभाव है और असंयमभाव की उत्पत्ति का कारण स्थावर हिंसा से अविरतिभाव है। इसलिये संयतासंयत नाम का पाँचवाँ गुणस्थान बन जाता है। ११. शंका - औदयिक आदि पाँच भावों में से किस भाव के आश्रय से संयमासंयम भाव पैदा होता है ? देशविरत गुणस्थान समाधान - संयमासंयम भाव क्षायोपशमिक है; क्योंकि अप्रत्याख्यानावरण कषाय के वर्तमान कालिक सर्वघाती स्पर्धकों के उदयभावी क्षय होने से और आगामी काल में उदय में आने योग्य उन्हीं के सदवस्थारूप उपशम होने से तथा प्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से संयमासंयमरूप अप्रत्याख्यान-चारित्र उत्पन्न होता है। १२. शंका - संयमासंयमरूप देशचारित्रके आधार से सम्बन्ध रखनेवाले कितने सम्यग्दर्शन होते हैं ? समाधान - क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक ये तीनों में से कोई एक सम्यग्दर्शन विकल्प से होता है; क्योंकि उनमें से किसी एक के बिना अप्रत्याख्यान चारित्र का प्रादुर्भाव ही नहीं हो सकता है। १३. शंका - सम्यग्दर्शन के बिना भी देशसंयमी देखने में आते हैं ? समाधान - नहीं, क्योंकि जो जीव मोक्ष की आकांक्षा से रहित हैं और जिनकी विषय-पिपासा दूर नहीं हुई है, उनके अप्रत्याख्यान संयम की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। कहा भी है - ___“जो जीव जिनेन्द्रदेव में अद्वितीय श्रद्धा को रखता हुआ एक ही समय में त्रस जीवों की हिंसा से विरत और स्थावर जीवों की हिंसा से अविरत होता है, उसको विरताविरत कहते हैं।" प्रश्न : हमारे पास थोड़ी सम्पत्ति है, तो दान कहाँ से करें? उत्तर : भाई ! विशेष सम्पत्ति हो तो ही दान हो; ऐसी कोई बात नहीं और तू उसे तेरे संसार कार्यों में खर्च करता है या नहीं? तो धर्म कार्य में भी उल्लासपूर्वक थोड़ी सम्पत्ति में से तेरी शक्तिप्रमाण खर्च कर। दान के बिना गृहस्थपना निष्फल है। अरे ! मोक्ष का उद्यम करने का यह अवसर है। उसमें सभी राग न छूटे तो थोड़ा राग तो घटा । मोक्ष के लिए तो सभी राग छोड़ना पड़ेगा । यदि दानादि द्वारा थोड़ा राग भी घटाते तुझसे नहीं बनता तो तू मोक्ष का उद्यम किसप्रकार करेगा? - श्रावकधर्मप्रकाश, पृष्ठ : ११४

Loading...

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142