Book Title: Gunsthan Vivechan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 29
________________ ५६ गुणस्थान विवेचन गुणस्थान: परिभाषा आचार्यश्री नेमिचन्द्र ने गोम्मटसार गाथा ३ व ८ में परिभाषा निम्नप्रकार दी है - गुणस्थान की संखेओ ओघोत्ति य, गुणसण्णा सा च मोहजोगभवा । जेहिं दु लख्विज्जन्ते उदयादिसु संभवेहिं भावेहिं । जीवा ते गुणसण्णा, णिद्दिद्वा सव्वदरसीहिं । मोह और योग के निमित्त से जीव के श्रद्धा और चारित्र गुण की होनेवाली तारतम्यरूप अर्थात् हीनाधिक अवस्था को गुणस्थान कहते हैं। अनादिकाल से अनंत सर्वज्ञ भगवंतों ने अनंत जीवों के कल्याण के लिए अनंत बार दिव्यध्वनि से परम सत्य / परमार्थ वस्तुव्यवस्था का कथन किया है। उसी का विवेचन आचार्यों ने शास्त्र में लिपिबद्ध किया है। उस वस्तुव्यवस्था के अनुसार प्रत्येक वस्तु, द्रव्य-गुण- पर्यायमय है। इन द्रव्यगुण- पर्यायों को छोड़कर इस विश्व में अन्य कुछ भी नहीं है। २. प्रश्न : वस्तुव्यवस्था में यह गुणस्थान क्या है ? द्रव्य, गुण या पर्याय ? उत्तर : जैनतत्त्वज्ञान की सामान्य जानकारी रखनेवाला मनुष्य भी यह जानता है कि द्रव्य तो जाति अपेक्षा जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल - ये छह ही हैं। उनमें गुणस्थान नाम का कोई द्रव्य नहीं है। द्रव्य की परिभाषा के अनुसार भी गुणस्थान द्रव्य नहीं हो सकता; क्योंकि गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं - यह द्रव्य की परिभाषा सर्व विदित है। गुणस्थान, गुणों का समूह नहीं है। अतः यह स्पष्ट हो गया कि गुणस्थान द्रव्य नहीं है। गुणस्थान, गुण भी नहीं है; क्योंकि ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि जीव द्रव्य के गुण हैं। स्पर्श, रस, गंध, वर्ण ये पुद्गल द्रव्य के गुण हैं । धर्मादि द्रव्यों के भी गतिहेतुत्व आदि गुण हैं। उन गुणों में भी 'गुणस्थान' गुणस्थान परिभाषा ५७ नाम का कोई गुण आगम में नहीं कहा गया है। गुण की परिभाषा के अनुसार भी गुणस्थान गुण नहीं हो सकता; क्योंकि जो द्रव्य के संपूर्ण भागों में और उसकी सभी अवस्थाओं में रहते हैं, उन्हें गुण कहते हैं। गुणस्थान किसी भी द्रव्य के संपूर्ण भागों में और उसकी सभी अवस्थाओं में नहीं रहते हैं। इसलिए आगम प्रमाण तथा तर्क से भी यह निर्णय हो ही जाता है कि गुणस्थान किसी भी द्रव्य का कोई गुण नहीं है । इसप्रकार यह स्वयमेव सिद्ध हो गया कि गुणस्थान मात्र पर्याय ही है। पर्याय शब्द का अर्थ परिणमन या अवस्था है। ऊपर परिभाषा में अवस्था को गुणस्थान कहते हैं - ऐसा आया ही है। तात्पर्य यह निकला कि गुणस्थान संसारी जीव द्रव्य की ही पर्याय है, सिद्ध जीव द्रव्य की नहीं, तथा पुद्गल, धर्मादि पाँचों अजीव द्रव्य की भी नहीं । गुणस्थान संसारी जीव द्रव्य की पर्याय निश्चित होने पर भी भेद विवक्षा से गुणस्थान जीव द्रव्य के किन-किन गुणों की पर्याय है, इसकी विशेष चर्चा क्रम से होगी ही । ग्रंथाधिराज समयसार शास्त्र में तो गुण और पर्यायों के भेदों को गौण करके सामान्य जीव द्रव्य की मुख्यता से चर्चा की है और गोम्मटसार ग्रंथ में द्रव्य और गुणों को गौण करके जीव द्रव्य की विकारी - अविकारी पर्यायों की मुख्यता से वर्णन किया है। अन्य शब्दों में कहा जाय तो समयसार को त्रिकाली, एक, अखंड, भगवान आत्मा की चर्चा दृष्टि की अपेक्षा से अपेक्षित है और गोम्मटसार को कर्मसापेक्ष पर्याय की चर्चा अपेक्षित है। द्रव्य कभी पर्याय को छोड़कर अलग नहीं हो सकता और पर्याय कभी द्रव्य को छोड़कर अलग नहीं हो सकती; यह वास्तविक वस्तुव्यवस्था है। द्रव्य - पर्याय इन दोनों में से मात्र एक का स्वीकार करना तो एकांत मिथ्यात्व है। अतः द्रव्य - पर्यायमय वस्तु का यथार्थ ज्ञान करना प्रत्येक जिज्ञासु मुमुक्षु का कर्त्तव्य है । यहाँ मुख्यतया गुणस्थानरूप पर्याय की चर्चा ही इष्ट है।

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