Book Title: Gunsthan Vivechan
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 23
________________ गुणस्थान विवेचन ७३. प्रश्न : द्वितीयोपशमसम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : क्षायोपशमिकसम्यक्त्व के अनंतर श्रेणी चढ़ने के लिए जो औपशमिक सम्यक्त्व होता है, उसे द्वितीयोपशमसम्यक्त्व कहते हैं। .श्रेणी चढ़ने के सन्मुख सातिशय सप्तम गणस्थानवर्ती क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि मुनिराज के (अनंतानुबंधीचतुष्क के विसंयोजन तथा) दर्शनमोहनीय त्रिक के उपशम के समय में अर्थात् निमित्त से होनेवाले श्रद्धागुण के सम्यक् परिणमन को द्वितीयोपशम-सम्यक्त्व कहते हैं। ७४. प्रश्न : विसंयोजन किसे कहते हैं ? उत्तर : अनंतानुबंधी चतुष्क के अप्रत्याख्यानावरण आदि बारह कषाय और हास्यादि नौ नोकषायकर्मरूप परिणमित होने को विसंयोजन कहते हैं। • यह विसंयोजना का कार्य चतुर्थ से सप्तम गुणस्थान पर्यन्त के किसी भी एक गुणस्थान में होता है। ७५. प्रश्न : जीव के असाधारण भाव किसे कहते हैं और वे कितने प्रकार के हैं ? उत्तर : जीव के अतिरिक्त अन्य द्रव्यों में न पाये जानेवाले अर्थात् मात्र जीव में ही पाये जानेवाले भावों को जीव के असाधारणभाव कहते हैं। ये औपशमिक आदि पांच प्रकार के हैं - १. औपशमिक भाव : निजशुद्धात्मसन्मख परुषार्थी जीव के मोहनीय कर्म के अंतरकरणरूप उपशम के समय में अर्थात् निमित्त से होनेवाले शुद्धभावों को औपशमिकभाव कहते हैं। २. क्षायिकभाव : निजशुद्धात्मसन्मख पुरुषार्थी जीव के कर्मक्षय के समय में होनेवाले एवं भविष्य में अनंत काल पर्यंत रहनेवाले शुद्धभावों को क्षायिकभाव कहते हैं। ३. क्षायोपशमिकभाव : कर्म के क्षयोपशम के समय में अर्थात् निमित्त से होनेवाले जीव के भावों को क्षायोपशमिकभाव कहते हैं। ४. औदयिकभाव : कर्मोदय के समय में अर्थात् निमित्त से होनेवाले जीव के भावों को औदयिकभाव कहते हैं। ५. पारिणामिकभाव : पूर्णत: कर्मनिरपेक्ष अर्थात् कर्म के उपशम, क्षय, क्षयोपशम और उदय से निरपेक्ष जीव के परिणामों को पारिणामिकभाव कहते हैं। महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर ७६. प्रश्न : निमित्तकारण किसे कहते हैं ? उत्तर : जो पदार्थ स्वयं विवक्षित कार्यरूप तो न परिणमे; परन्तु कार्य की उत्पत्ति में अनुकूल होने का जिस पर आरोप आ सके, उस पदार्थ को निमित्त कारण कहते हैं। जैसे - घट की उत्पत्ति में कुंभकार, दण्ड, चक्र आदि । ७७. प्रश्न : निमित्त-नैमित्तिक संबंध किसे कहते हैं ? उत्तर : जब उपादान स्वत: कार्यरूप परिणमता है, तब भावरूप या अभावरूप किस उचित (योग्य) निमित्त कारण का उसके साथ सम्बन्ध है - यह बताने के लिए उस कार्य को नैमित्तिक कहते हैं। इस तरह से भिन्न पदार्थों के इस स्वतन्त्र सम्बन्ध को निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध कहते हैं। निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध परतन्त्रता का सूचक नहीं है, किन्तु नैमित्तिक के साथ कौन निमित्तरूप पदार्थ है; उसका ज्ञान कराता है। जिस कार्य को निमित्त की अपेक्षा नैमित्तिक कहा है, उसी को उपादान की अपेक्षा उपादेय भी कहते हैं। ७८. प्रश्न : आवली किसे कहते हैं ? उत्तर : जघन्य युक्त असंख्यात समय-समूह को आवली कहते हैं। ७९. प्रश्न : समय किसे कहते हैं ? उत्तर : एक आकाश के प्रदेश से निकटवर्ती अन्य आकाश के प्रदेश पर्यंत मंदगति से गमन करते हुए परमाणु के गमन काल को समय कहते हैं। यह व्यवहार काल का सबसे छोटा अंश है। ८०. प्रश्न : प्रदेश किसे कहते हैं? उत्तर : एक परमाणु से व्याप्त आकाशक्षेत्र को प्रदेश कहते हैं। • एक प्रदेश में अनंत परमाणुओं को अवगाहन देने की शक्ति है। ८१. प्रश्न : अंतर्मुहूर्त किसे कहते हैं ? उत्तर : मुहूर्त में से एक समय कम शेष काल प्रमाण को भिन्न मुहूर्त कहते हैं। उस भिन्न मुहूर्त में से भी एक समय कम शेष काल प्रमाण को अंतर्मुहूर्त कहते हैं; यह उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त है। • जो मुहूर्त के समीप हो, उसे अंतर्मुहूर्त कहते हैं। • आवली से अधिक और मुहूर्त से कम काल को अंतर्मुहूर्त कहते हैं। • एक मुहूर्त में ३७७३ श्वासोच्छवास होते हैं। एक श्वासोच्छवास में

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