Book Title: Gautam Pruccha Author(s): Lakshmichandra Jain Library Publisher: Lakshmichandra Jain Library View full book textPage 6
________________ श्रीगौतमगुरुभ्यो नमः । गौतमच्छा . मंगलाचरण. नत्वा वीरजिनं बालारबोधो लिख्यते मया । श्रीमद्गौतमपृच्छाया वाचनार्थ विशेषतः ॥ १ ॥ श्रीसोमसुन्दरश्रीमुनिसुन्दरमद्विशालराजेन्द्राः । श्रीसोमदेवगुरवो जयन्ति जिनकल्पवृक्षसमाः ॥२॥ नमिऊण तित्थनाहं जाणतो तहय गोयमा भयवं । अबुहाण बोहणत्थं धम्माधम्म फलं पुच्छे ॥ १॥ भावार्थ:-तीर्थके नाथ श्रीमहावीर भगवानको नमस्कार करके, स्वयं विज्ञ होने पर भी श्रीगौतमस्वामी, अबुधजीवोंके बोधार्थ श्रीभगवानसे धर्माधर्मका फल पूछते हैं। यद्यपि श्रीगौतमस्वामी स्वयं चार ज्ञानके धारक और श्रुतकेवली होनेसे श्रुतज्ञानके बलसे असंख्य भव सम्बन्धी सन्देहको स्वयं जानते थे; तथापि इसप्रकार प्रश्न करनेका उनका उद्देश्य केवल यही था कि-अबोधजीवोंको बोध होवे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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