Book Title: Dropadiswayamvaram Author(s): Jinvijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 7
________________ [३] विजयपाल का नाम, इस नाटक के सिवा अन्यत्र कहीं हमारे देखने में नहीं आया । कोई कृति भी दूसरी अभी तक ज्ञात नहीं हुई । परंतु यह अपने आप को, इस प्रबन्ध में, 'महाकवि ' के उपनाम से सूचित करता है इस लिये इस ने और भी कोई रचना अवश्य की होगी ही। परंतु, या तो सर्वनाशी काल ने उस का कवल कर लिया होगा, या कहीं किसी अन्धकारपूर्ण पूराणे घर के एक कोने में टूटे-फटे बस्ते में बन्धी हुई सड-गल रही होंगी । अस्तु । प्रसङ्ग वश, इस कीर्तिशाली कुल के विषय में हमें जो कुछ ज्ञात हुआ है वह लिख देते हैं। विजयपाल के पिता का नाम, जैसा कि स्वयं उसने इस प्रबन्ध में उल्लिखित किया है, सिद्धपाल था । वह भी 'महाकवि' था। इस की स्वतंत्र कृति अभी तक हमें कोई श्रुत या ज्ञात हुई नहीं । सोमप्रभसूरि नाम के एक बहुत अच्छे जैन विद्वान् हो गये हैं । शतार्थीकाव्य, मुक्तमुक्तावली, सुमतिनाथचरित्र, कुमारपालप्रतिबोध आदि कई संस्कृत-प्राकृत ग्रंथ उन के लिखे हुए मिलते हैं । इन में से पिछले दो ग्रंथों की अन्त की प्रशस्तियों सिद्धपाल का उल्लेख किया हुआ है । ये ग्रन्थ सिद्धपाल की वसति ( उपाश्रय ) में रह कर उन्हों ने रचे थे, ऐसा प्रसंग वर्णित है । उदाहरण के लिये सुमतिनाथचरित्र के प्रशस्ति पद्य लीजिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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