Book Title: Dropadiswayamvaram
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 10
________________ इसी तरह एक और जगह भी जिक्र है । हेमचन्द्राचार्य से उचितार्थी को दिये जाने वाले अन्न-वस्त्रादि के दान का माहात्म्य सुन कर कुमारपाल राजा ने राज्य की ओर से एक बड़ा भारी सत्रागार ( दानशाला) खोला और उस का अधिष्ठायक श्रीमाल. कुल-भूषण नेमिनाग के पुत्र अभयकुमार शेठ को नियत किया। यह शेठ बहुत धर्मिष्ठ, परोपकारी, दयाशील, चतुर और सरल हृदयी था। ऐसे योग्य पुरुष की योग्य कार्य ऊपर नियुक्ति देख कर सिद्धपाल का हृदय बडा आनन्दित हुआ और नृपति को इस उचितकार्य-कारिता के लिये धन्यवाद दिया। साथ में उस ने अभयकुमार शेठ की प्रशंसा भी इन दो पद्यों द्वारा की देव-गुरु-पूयण-परो परोवयारुजओ दया-पवरो। दक्खो दक्खिन्न-निही सच्चो सरलासओ एसो॥ क्षिप्त्वा तोयनिधिस्तले मणिगणं रत्नोत्करं रोहणो रेवावृत्य सुवर्णमात्मनि दृढं बद्ध्वा सुवर्णाचलः । क्ष्मामध्ये च धनं निधाय धनदो विभ्यत्परेभ्यः स्थितः किंस्यात्तैः कृपणैः समोऽयमखिलार्थिभ्यः स्वमर्थ ददत् ॥ * तत्थ सिरिमाल-कुल-नह-निसि-नाहो नेमिणाग-अंगरुहो । अभयकुमारो सेट्टी कमो अहिहायगो रन्ना ॥ इत्थंतरम्मि कवि-कवहि-सिरिवाल-रोहण-भवेण । बुह-यण-चूड़ामाणणा पयंपियं सिद्धवालेण ॥ - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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