Book Title: Dropadiswayamvaram
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 26
________________ [२२] इस लेख की जो प्रतिकृति हमारे पास है वह स्पष्ट नहीं है इस लिये उस का उत्तर भाग साफ साफ पढा नहीं जाता । प्रारंभ का एक पद्य कितनीक कठिनता के साथ जो वांचा जाता है वह इस प्रकार है:प्राग्वाटान्वयवंशमौक्तिमणेः श्रीलक्ष्मणस्यात्मजः श्रीश्रीपालकवीन्द्रबन्धुरमलश्चाशालतामण्डपः। श्रीनाभेयजिनांहिपामधुपस्त्यागाद्भुतैः शोभितः श्रीमान् शोभित एष सद्यविभवः स्वर्गोकमासेदिवान् ॥ (देखो, मेरा, प्राचीनजैनलेखसंग्रह, नं. २७१). इस पद्य से ज्ञात होता है कि श्रीपाल कविराज के पिता का नाम लक्ष्मण था । लेख का पिछला भाग जो यदि स्पष्ट पढा जाय तो इस में से कुछ और भी वृत्तान्त इस कवि के बारे में उपलब्ध हो सकता है । इस अस्पष्ट भाग में से जो कोई कोई शब्द वांचा जाता है उससे जाना जाता है, कि वहां पर श्रीपाल के कुछ पुत्रों का उल्लेख है । वह मूर्ति जिस के नीचे यह लेख है, भगवान् आदिनाथ तीर्थकर की भव्य मूर्ति के सन्मुख हाथ जोडे खडी है और मानों प्रभु से प्रार्थना कर रही है, ऐसा दृश्य है। संभव है कि, श्रीपाल का कुल, इस अद्भुत मंदिर के निर्माता गुर्जरेश्वर भीमदेव के प्रबल दण्डनायक विमलशाह ही की संतति में से हों। बिमलशाह ने यह मन्दिर वि. सं. १०८. में प्रतिष्ठित किया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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