Book Title: Dropadiswayamvaram
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 25
________________ [२१] अर्थ जो सैन्य किया जाता है वह कोष-विरुद्ध है और 'कमल' शब्द को नित्य नपुंसक कहा है वह भी व्याकरण-विरुद्ध है । फिर सिद्धराज के आग्रह से 'दल' शब्द का तो ज्यों त्यों कर के सैन्य अर्थ स्थापित किया और 'कमल' शब्द का नित्य नपुंसकत्व मिटाने के लिये पाठ-परिवर्तन कर के दिखाया। इस प्रकार रामचन्द्र कवि की सूक्ष्मेक्षिका देख कर सब विद्वान् चमत्कृत हुए, परंतु सिद्धराज की नजर लग जाने से, मकान में पहुंचते पहुंचते ही उस की एक आंख जाती रही ! वादी देवसरि के गुरुभ्राता आचार्य विजयसिंह के शिष्य हेमचन्द्र ने ' नाभेय-नेमि-द्विसन्धान ' नाम का एक काव्य (प्रबन्ध) बनाया है जिस का संशोधन श्रीपाल कवि ने किया था, ऐसा उस के अन्तिम पद्य से जाना जाता है । यथा एकाहनिष्पन्नमहाप्रबन्धः श्रीसिद्धराजप्रतिपन्नबन्धुः । श्रीपालनामा कविचक्रवर्ती सुधीरिमं शोधितवान् प्रबन्धम् ॥* आबू पहाड के देलवाडा नामक स्थान पर विमलसाह का बनवाया हुआ जो जगप्रसिद्ध जैनमंदिर है उस के रब्रमण्डप में, एक स्थंभ के पास, संगमर्मर की एक पुरुष-प्रतिमा प्रतिष्ठित है, जो इसी श्रीपाल कवि की हों ऐसा प्रतीत होता है । इस मूर्ति के नीचे ८-१० पंक्तियों का एक छोटासा लेख खुदा हुआ है । . * देखो, जैनहितैषी, भाग १२, संख्या ९-१०, में, सूक्तिमुक्तावली और सोमप्रभाचार्य, शीर्षक मेरा लेख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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