Book Title: Dropadiswayamvaram
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 24
________________ [२०] एकोऽप्येष करोति कोशरहितो निष्कण्टकं भूतलं मत्वैवं कमला विहाय कमलं यस्यासिमाशिश्रियत् ॥ इस पिछले पद्य के वारे में प्रबन्धचिन्तामणिकार ने एक विचित्र वृत्तान्त दिया है । लिखा है कि जब यह प्रशस्ति बन-लिख कर तैयार हो गई, तब इस का परीक्षण-संशोधन करने के लिये सिद्धराज ने सब मतों के नामी नामी विद्वानों को बुलाये । सुप्रसिद्ध हेमचन्द्राचार्य का शिष्य महाकवि रामचन्द्र भी वहां पर आया । यह कवि बडा सूक्ष्मदृष्टि और निपुणमति था । इस लिये, हेमचन्द्राचार्य ने पहले ही से इस को सूचना कर दी थी कि, सभी विद्वान् श्रीपाल की की हुई प्रशस्ति की एक स्वर से प्रशंसा करेंगे इस लिये तुमने कोई अपनी विदग्धता नहीं दिखाना । खैर, सब विद्वान् वहां पर एकत्र हुए और सभीने प्रशस्ति की कविता की बडी प्रसंशा की । भिन्न भिन्न विद्वानों ने प्रत्येक पद्य उपर भिन्न भिन्न प्रकार के गुणों और अलंकारों का उत्तम विवेचन किया। विशेष कर इस (पिछले ) पद्य की खूब प्रसंशा हुई । परंतु, कवि रामचन्द्र कुछ भी नहीं बोला और तटस्थ भाव से सब काई देखते रहा । जब सिद्धराज ने आग्रहपूर्वक पूछा कि इस पद्य के विषय में आप की क्या राय है, तब रामहन्द्र ने कहा कि इस में दो दूषण है इस लिये यह चिन्तनीय है । विद्वानों का बहुत आग्रह होने पर उस ने दूषणों का उद्घाटन करते हुए कहा कि 'दल ' शब्द का दूसरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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