Book Title: Dropadiswayamvaram
Author(s): Jinvijay
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 18
________________ [१४] कीर्ति होती है । इस लिये तुम बताओ कि, क्या किया जॉय ? 'प्रज्ञाचक्षु कवीश्वर ने कहा कि, महाराज ! मुझे तो यह कोई निस्पृही नहीं परंतु आडंबरी लगता है । अगर निस्पृही होता तो इस के साथ में जो इतना प्रपंच है वह क्यों रखता ? तो भी यदि आप भारती-भक्त होने से उस से मिलना ही चाहते हैं तो अपने मंत्री द्वारा उस को स्वागत पूर्वक अपनी सभा में आने के लिए आमंत्रण भेज दीजिए । नृपति ने, कविराज की सूचनानुसार अपने मंत्री को, उस विद्वान् को आह्वान देने के लिये भेजा। मंत्री ने जा कर विद्वान् से विज्ञप्ति की, जिस के उत्तर में उस ने कहा आहानायागता यूयं मम भूपतिदेशतः। भूपालैः किं हि नः कार्य स्पृहाविरहितात्मनाम् ॥ तथा काशीश्वरं कान्यकुब्जाधीशं समीक्ष्य च । गणयामः कथं स्वल्पदेशं श्रीगूर्जरेश्वरम् ।। परमसदिक्षैव भवतां खामिनस्तदा । उपविष्टः क्षितौ सिंहासनस्थं मां स पश्यतु ॥ अर्थात्-राजा के आदेश से तुम लोक मुझे बुलाने के लिये आये हो सो ठीक है, परंतु हमारे जैसे निस्पृहियों को राजाओं से क्या लेना देना है। तथा काशीश्वर और कान्यकुब्जाधीश जैसे महान् नरेशों के देखे बाद गूर्जरेश्वर जैसे क्षुद्र नृपति को हम किस गिनती म गिने ! इतना होने पर भी तुमारे स्वामी को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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