Book Title: Dropadiswayamvaram Author(s): Jinvijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 8
________________ [ 8 ] * सूनुस्तस्य कुमारपालनृपतिप्रीतेः पदं धीमतामुचंसः कविचक्रमस्तकमणिः श्रीसिद्धपाळोऽभवत् । यं व्यालोक्य परोपकारकरुणासौजन्यसत्यक्षमादाक्षिण्यैः कलितं कलौ कृतयुगारम्भो जनैर्मन्यते ॥ तस्य पौषधशालायां पुरेऽणहिलपाटके । $ निष्प्रत्यूहमिदं प्रोक्तं ... तात्पर्य यह है कि, सिद्धपाल कवियों के समूह में मुकुट समान था । कुमारपाल राजा का बडा प्रीतिपात्र था; और परोपकार, करुणा, सौजन्य, सत्य और क्षमा आदि श्रेष्ठजनोचित गुणों सें विभूषित था । उसी सिद्धपाळ की पौषधशाळा (उपाश्रय-जैनवसति ) में ठहर कर यह ग्रन्थ बनाया गया, इत्यादि । .............. "I + कुमारपालप्रतिबोध नामक ग्रन्थ के अन्त में भी ऐसा ही एक पद्य दिया हुआ हैहै— * इस के पहले के पद्य में, सिद्धपाल के पिता का उल्लेख है, जो आगे लिखा जायगा । $ हमारे पास की प्रति में इस पद्य का चतुर्थ चरण त्रुटित है । + इस ग्रन्थ में, हेमचन्द्राचार्यने कुमारपाल को जैन धर्म प्रतिपादि सिद्धान्तों का, समय समय पर जिन आख्यानों द्वारा बोध दिया था, उन का वर्णन है । ग्रन्थ बहुत बडा है और प्रायः प्राकृत भाषामय है । गायकवाडस् ओरिएन्टल सीरीज ' नामक बडोदा गवर्नमेन्ट की ओर से प्रकट होने वाली पुस्तकमाला के लिये यह प्रन्थ हमारी ओर से तैयार किया जा रहा है । " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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