Book Title: Dropadiswayamvaram Author(s): Jinvijay Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 6
________________ [२] यह द्वि-अंकी नाटक खेला गया था और इस के अभिनय से गुर्जर राजधानी अणहिलपुर की प्रजा प्रमुदित हुई थी। इतनी बात, इसी नाटक के प्रारंभ में जो सूत्रधार का कथन है उसी से ज्ञात होती है। कवि की तरफ दृष्टि करने से यह कृति बडे महत्व । मालूम देती है । क्यों कि इस के सहारे से हमें गुर्वी गुजरात एक कमला-कान्त कवि-कुल का कुछ पता लगता है । आ ऐतिहासिक उल्लेखों-साधनों से, जिन का जिक्र आगे पर जायगा, मालूम होता है, कि कवि का कुल बहुत प्रतिष्ठित सारस्वत-भक्त था । राजकीय दृष्टि से सिवा भी, कवि के का गुर्जर-नरेशों के साथ खास विशेष प्रकार का सम्बन्ध था विजयपाल तथा उस के पिता-प्रपितादि 'राज-कवि' थे कुल जाति से प्राग्वाट ( पोरवाड ) वैश्य था और धर्म इ श्वेताम्बर-जैन था । अणहिलपुर में, इस कुल की ओर से । जैन मंदिर और जैन साधुओं के ठहर ने के लिये 'वर (जैन उपाश्रय ) आदि बने हुए थे । इन के उपाश्रय में बडे बडे जैन विद्वान् मुनि आ आ कर निवास करते थे। ग्रन्थों के अन्त में, उन के, इन के उपाश्रय में बने जाने स्मरणीय उल्लेख भी किया गया हमारे देखने में आया है। से जाना जाता है कि यह कुल श्रीमान् , विद्वान् , राजमान्य जनसम्मान्य था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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