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विशेषता
की प्राचीनता । जैन दर्शन में द्रव्य
आस्तिक और नास्तिक विचारधारा जैन दर्शन द्रव्य का निरूक्त अर्थ द्रव्य के पर्यायवाची शब्द द्रव्य की परिकल्पना का कारण भारतीय दार्शनिक के द्रव्य एवं सृष्टि के
संबंध में विभिन्न
बौद्ध धर्मानुसार
मत उपनिषद् के अनुसार द्रव्य एवं सृष्टि द्रव्य एवं सृष्टि सांख्य दर्शन के अनुसार द्रव्य एवं सृष्टि चार्वाक मत में द्रव्य एवं सृष्टि जैन दर्शन की द्रव्य एवं सृष्टि के संबंध में मान्यता
2. जैन परम्परा मान्य द्रव्य का लक्षण
■ जैन परंपरा में सत् का लक्षण युक्त है
द्रव्य लक्षण गुण पर्याय सहभावी और क्रमभावी की अपेक्षा गुण पर्याय ■ वस्तु अनंत धर्मात्मक है द्रव्य त्रिकालिक है | अस्तित्व की अनिवार्यता परिणमन है । ऊर्ध्वता एवं तिर्यक् की अपेक्षा द्रव्य, उत्पादादि भिन्न भी द्रव्य में एकांतिक प्रतिपादन के दूषण द्रव्य गुण पर्याय में एकांत भेद नहीं द्रव्य गुण और पर्याय में एकांत अभेद भी नहीं जैन दर्शन समन्वयवादी उत्पाद, व्यय एवं धौव्य में काल की भिन्नता - अभिन्नता सभी द्रव्य स्वतंत्र है सद् सप्रति पक्ष है- ( सद्-असद् वाच्यावाच्य, अस्तित्व, नास्तित्व, सामान्य विशेष ) सद्-असद् न्याय वैशेषिक, भेद अभेद वेदान्त व सामान्य कुमार के अनुसार ) नय का स्वरूप और उसकी आवश्यकता षड् द्रव्यों का विभाजन- चेतन अचेतन की अपेक्षा, मूर्त अमूर्तकी अपेक्षा, एक व अनेक की अपेक्षा, परिणामी व नित्य की अपेक्षा, सप्रदेशी व अप्रदेशी की अपेक्षा, क्षेत्रवान एवं अक्षेत्रवान की अपेक्षा, सर्वगत व असर्वगत की अपेक्षा, कारण एवं अकारण की अपेक्षा, कर्ता व भोक्ता की अपेक्षा ।
3. जैन दर्शन के अनुसार आत्मा
■ आत्मा शब्द की व्युत्पत्ति आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि
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