Book Title: Digambaratva Aur Digambar Muni
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Digambar Jain Sarvoday Tirth

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Page 16
________________ ॐ नमः सिद्धेभ्यः दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि _[१] | दिगम्बरत्व (मनुष्य की आर्दश स्थिति) "मनुष्य मात्र को आदर्श स्थिति दिगम्बर ही है। आदर्श मनुष्य सर्वथा निर्दोष होता है-विकारशून्य होता है।" -महात्मा गाँधी "प्रकृति की पुकार पर जो लोग ध्यान नहीं देते, उन्हें तरह-तरह के रोग और दुःख घेर लेत है, परन्तु पवित्र प्राकृतिक जीवन बिताने वाले जंगल के प्राणी रोगमुक्त रहते हैं और मनुप्य के दुर्गुणों और पापाचारों से बचे रहते हैं।" -रिटर्न टु नेचर दिगम्बग्त्व प्रकृति का रूप है। वह प्रकृति का दिया हुआ मनुष्य का वेष है। आदम और हवा इसी रूप में रहे थे। दिशायें ही उनके अम्बर थे-वस्वविन्यास उनका यही प्रकृतिदत्त नग्नत्व था। वह प्रकृति के अंचल में मुख की नींद सोते और आनन्द रेलिया करते थे। इसलिये कहते हैं कि मनुष्य को आदर्श स्थिति दिगम्बर है। नग्न रहना ही उनके लिये श्रेष्ठ है। इसमें उसके लिये अशिष्टता और असभ्यता की कोई बात नहीं है, क्योंकि दिगम्बरत्व अथवा नग्नत्व स्वयं अशिष्ट अथवा असत्य वस्तु नहीं है। वह तो मनुष्य का प्राकृत रूप है। ईसाई मतानुसार आदम और हल्या नंगे रहते हुए कभी न लजाये और न वे विकार के चंगुल में फंसकर अपने सदाचार से हाथ धो बैठे। किन्तु जब उन्होनें बुराई-भलाई, पाप-पुण्य का वर्जित फल खा लिया तो वे अपनी प्राकृत दशा को खो बैठे और उनकी सरलता जाती रही। वे संसार के साधारण प्राणी हो गये। बच्चे को लीजिये. उसे कभी भी अपने नग्नत्व के कारण लज्जा का अनुभव नहीं होता और न उसके माता-पिता अथवा अन्य लोग ही उसकी नग्नता पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं। अशक्त रोगी की परिचर्या स्त्री या धाय दिगम्बराय और दिगम्बर मुनि

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