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अध्याय १०
विजयादशमी एवं दिवाली (दीपावली)
आश्विन शुक्ल की दशमी को विजयादशमी कहा जाता है। इसका विशद वर्णन हेमाद्रि ( व्रत, भाग १, पृ० ९७०-९७३), निर्णयसिन्ध ( पृ०६९-७० ), पुरुषार्थचिन्तामणि ( पृ० १४५ - १४८), व्रतराज ( पृ० ३५९-३६१), कालतत्त्वविवेचन. (पृ० ३०९ - ३१२), धर्मसिन्धु ( पृ० ९६ ) आदि में किया गया है। कालनिर्णय ( पृ० २३१२३३) के मत से शुक्ल पक्ष की जो तिथि सूर्योदय के समय उपस्थित रहती है उसे कृत्यों के सम्पादन के लिए उचित समझना चाहिए और यही बात कृष्ण पक्ष की उन तिथियों के विषय में भी पायी जाती है जो सूर्यास्त के समय उपस्थित रहती हैं । हेमाद्रि ( व्रत, भाग १, पृ० ९७३ ) ने विद्धा दशमी के विषय में दो नियम प्रतिपादित किये हैं - वह तिथि, जिसमें श्रवण नक्षत्र पाया जाय, स्वीकार्य है तथा वह दशमी, जो नवमी से संयुक्त हो । किन्तु अन्य निबन्धों में तिथि सम्बन्धी बहुत-से जटिल विवेचन उपस्थित किये गये हैं । दो-एक निम्न हैं। यदि दशमी नवमी तथा एकादशी से संयुक्त हो तो नवमी स्वीकार्य है यदि इस पर श्रवण नक्षत्र न हो । स्कन्दपुराण में आया है--'जब दशमी नवमी से संयुक्त हो तो अपराजिता देवी की पूजा दशमी को उत्तर-पूर्व दिशा में अपराह्न में होनी चाहिए। उस दिन कल्याण एवं विजय के लिए अपराजिता - पूजा होनी चाहिए।' (हे०, व्रत, भाग १, पृ० ९७३, पुराणसमुच्चय का उद्धरण; नि० सि० पृ० १८९ ) । यह द्रष्टव्य है कि विजया-दशमी का उचित काल है अपराह्न, प्रदोष केवल गौण काल है । यदि दशमी दो दिनों तक चली गयी हो तो प्रथम ( नवमी से संयुक्त ) स्वीकृत होनी चाहिए। यदि दशमी प्रदोष काल में ( किन्तु अपराह्न में नहीं) दो दिनों तक विस्तृत हो तो एकादशी से संयुक्त दशमी स्वीकृत होती है । जन्माष्टमी में जिस प्रकार रोहिणी मान्य नहीं है उसी प्रकार यहाँ श्रवण निर्णीत नहीं है । यदि दोनों दिन अपराह्न काल में दशमी न अवस्थित हो तो नवमी से संयुक्त दशमी मान ली जाती है, किन्तु ऐसी दशा में जब दूसरे दिन श्रवण नक्षत्र हो तो एकादशी से संयुक्त दशमी मान्य होती है। ये निर्णय निर्णयसिन्धु के हैं। अन्य विवरणों एवं मतभेदों के लिए देखिए हे० ( व्रत, मा० १, पृ० ९७३), नि० सि० ( पृ० १२९), स० म० ( पृ० ६९ ), भृगु (स० म०, पृ० ६९ ), धर्मसिन्धु ( पृ० ९६-९७ ), मुहूर्तचिन्तामणि (११/७४) ।
विजयादशमी वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा | इसीलिए भारत में बच्चे इस दिन अक्षरारम्भ करते हैं ( सरस्वती पूजन), इसी दिन लोग नया कार्य
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१. तथा च मार्कण्डेयः । शुक्लपक्षे तिथिग्रह्या यस्यामभ्युदितो रविः । कृष्णपक्ष तिथिग्रह्या यस्यामस्तमितो रविः इति ।... . तत्पूर्वोत्तरविद्धयोर्द्दशम्योः पक्षभेदेन व्यवस्था द्रष्टव्या । का० नि० (१०२३१-२३३) ।
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