Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 4
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 518
________________ मध्यकालीन भारत की धार्मिक उदारता के ज्वलन्त उदाहरण और अन्यत्र के प्रत्युदाहरण ५०१ है कि जीवन में मैंने इस प्रकार की घटना कहीं और नहीं सुनी। देखिए इलियट की 'हिस्ट्री आव इण्डिया' (जिल्द २, पृ० १६२-१६३) । सोमनाथ- पट्टन लेख (इण्डियन ऐण्टीक्वेरी, जिल्द ११, पृ० २४१ ) एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण लिखित प्रमाण है । हर्मज के एक जहाज वाले व्यक्ति ने पवित्र सोमनाथ- पट्टन की बस्ती में एक भूमि खण्ड खरीद लिया, वहाँ एक मस्जिद, एक घर एवं एक दूकान बनवायी । उपर्युक्त पत्रक (लेख) का तात्पर्य था उस भूमि की बिक्री को स्वीकृत कर लेना, उससे प्राप्त धन का व्यय सोमनाथ के शिया नाविकों द्वारा मनाये जाने वाले विशिष्ट मुस्लिम धार्मिक उत्सवों में करने की व्यवस्था करना और इसकी व्यवस्था करना कि जो कुछ शेष हो वह मक्का एवं मदीना के पवित्र नगरों में भेज दिया जाय। इसकी तिथि चार संवतों में है, यथा रसुल - मुहम्मद संवत् अर्थात् ही वर्ष ६६२, विक्रम सं० १३२० ( १२६४ ई० ), वलभी वर्ष ९४५ एवं सिंह संवत् १५१ ( अर्थात् सम्भवतः चालुक्य सिद्धराज जयसिंह का ) । दक्षिण भारत के हिन्दू राजाओं ने सीरिया के तत्कालीन ईसाइयों को बहुत-सी सुविधाएँ दे रखी थीं । = उपर्युक्त उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि मध्यकाल में भी, जब मुसलमान भारत पर आक्रमण एवं अत्याचार कर रहे थे, भारतीय राजा एवं प्रजाजन सहिष्णु थे। पाठक गण स्वयं सोचें कि १३ वीं शती में यदि कोई हिन्दू ईसाई या मुस्लिम देशों में किसी मन्दिर के निर्माण का साहस करता या ईसाई या मुस्लिम धर्म एवं जीवन के विषय में लिखने के लिए सामग्री एकत्र करने का साहस करता तो उसकी क्या गति होती, जब कि ११ वीं शती में अल्बरूनी बिना किसी अत्याचार या कष्ट के हिन्दू पण्डितों एवं सामान्य जनों से विशद सामग्री एकत्र करने में समर्थ हो सका था। मुस्लिम बादशाह कितने असहिष्णु थे, इस विषय में विस्तार से कहने की कोई आवश्यकता नहीं है । दो-एक उदाहरण पर्याप्त होंगे। हम यहाँ 'कैम्ब्रिज हिस्ट्री आव इण्डिया' की जिल्द ३ के पृष्ठों की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट करेंगे। फीरोज शाह तुगलक ने एक ब्राह्मण को जिन्दा जला दिया, क्योंकि उसने अपने धर्म के प्रसार की जुर्रत (साहस) की थी (वही, पृ० १८७ ) ; यही कृत्य सिकन्दर लोदी ने एक ब्राह्मण के साथ किया ( १० २४६), उसने हिन्दू मन्दिरों को बहुत बड़ी संख्या में तोड़-फोड़ डाला; कश्मीर के सुल्तान सिकन्दर ने अपनी प्रजा के सामने दो विकल्प रखे : मुसलमान बनो या देश के बाहर जाओ ( पृ० २८० ) ; बंगाल के हुसेनशाह ने एक सेना नवद्वीप के विध्वंस के लिए भेजी और बहुत-से ब्राह्मणों को बलात् मुसलमान बना दिया। जहाँगीर ने अपने संस्मरण (मेम्बायर्स, ए० रोजर्स द्वारा अनूदित एवं एच्० बेवरिज द्वारा सम्पादित, १९०९, पृ०७२-७३ ) में लिखा है कि उसने गुरु अर्जुनसिंह को उनके धार्मिक कार्यकलाप के फलस्वरूप मार डाला । देखिए यदुनाथ सरकार कृत 'हिस्ट्री आव औरंगजेब' (जिल्द ३, अध्याय ३०, पु० २६५-२७९), जहाँ कतिपय फरमानों का उल्लेख है, जो सोमनाथ, मथुरा, विश्वनाथ (बनारस, जो अब पुनः वाराणसी कहा जाने लगा है) एवं उज्जैन के मन्दिरों को तोड़ देने के लिए निकाले गये थे । और देखिए उस ग्रन्थ का एपेण्डिक्स ५। यहाँ यूरोप में यहूदियों पर किये गये अत्याचारों, 'इंक्विजिशन' द्वारा विशेषतः स्पेन एवं पोर्तुगाल में आचरित भयंकर क्रूर यातनाओं की ओर ध्यान ले जाने की आवश्यकता नहीं है। इन भीषण दुष्कर्मों से विश्व के इतिहास के पन्ने गन्दे हो गये हैं । यहूदियों पर किये गये अत्याचारों और उत्पीडन आदि के विषय में पढ़िए सेसिल रॉय कृत 'ए शार्ट हिस्ट्री आव दि ज्यूयिश पीपुल' (मैक्मिलन एण्ड कम्पनी, १९३६), अध्याय २०-२१। दो-एक उदाहरण यहाँ दिये जा रहे हैं। 'इन्क्विजिशन' द्वारा धर्म के कार्य या 'ऑटोस्द-फा' उपस्थित किये जाते थे । सहस्रों व्यक्तियों की उपस्थिति में, उन व्यक्तियों पर, जिनके विषय में पवित्र कैथोलिक धर्म के विरोध में सन्देह उत्पन्न हो जाता था, महादारुण यातनाएँ ढाही जाती थीं। जो प्रायश्चित्त करने के लिए मान जाते थे उनकी सम्पत्ति छीन ली जाती थी और वे बन्दीगृह में डाल दिये जाते थे, या देश-निष्कासित कर दिये जाते थे या दास बनाकर नाव खेने या युद्धपोत पर पतवार चलाने के लिए भेज दिये जाते थे । कुछ लोग, जो धर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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