Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 4
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 522
________________ बौद्ध धर्म के विलोप के कारण ५०५ ग्रन्थों ने अपने अनुयायियों के लिए निर्देश किया है। मनु (५।४५) एवं विष्णुधर्मसूत्र (५११६८) में आया है'वह व्यक्ति जो केवल अपने आनन्द के लिए अहानिकर पशुओं (यथा हरिण) को मारता है, वह जीते-जी या मृत्यु के उपरान्त न तो सुख-वृद्धि कर पाता और न चैन से पलता ही है। ऐसा ही वचन धम्मपद (१३१) में भी आया है। यहाँ तक कि ऋ० (१०।८५।१) में आया है-'यह पृथिवी सत्य द्वारा आधृत है, आकाश सूर्य द्वारा ठहरा हुआ है।' मुण्डकोपनिषद् (३।११६) में आया है-'केवल सत्य की विजय होती है, असत्य की नहीं।' (७) उन ब्राह्मणों का शक्तिशाली विश्वास (धर्म) एवं जागरूकता, जिन्होंने वेद, उपनिषदों के दर्शन, मध्यम मार्ग की यौगिक क्रियाओं (यथा-गीता में ६।१५-१७), विश्वास एवं भक्ति से सब के लिए मुक्ति-प्राप्ति के सिद्धान्त आदि को एक में बांध दिया और जो सब के मन में अटल विराजमान था। (८) बौद्ध धर्म के वेग को रोकने के हेतु अपने धार्मिक विश्वासों एवं प्रयोगों में परिवर्तन करने के लिए एवं हिन्दू धर्म को अधिक जनप्रिय करने के लिए ब्राह्मणों एवं समाज के अन्य नेताओं ने ईसा के पूर्व एवं उपरान्त कई शतियों तक आदान-प्रदान की विलक्षण नीति अपना ली थी। पुराने वैदिक देव (इन्द्र, वरुण आदि) पृष्ठभूमि में पड़ गये, बहुत-से वैदिक यज्ञ छोड़ दिये गये, देवी, गणेश एवं मातृका आदि देव-देवियाँ प्रसिद्धि को प्राप्त हो गयीं, वैदिक मन्त्रों के साथ पौराणिक मन्त्रों का प्रयोग होगे लगा। वराहमिहिर (छठी शती का पूर्वार्ध) ने वैदिक मन्त्रों के साथ साधारण मन्त्रों का प्रयोग किया है (बृ० सं० ४७।५५-७०, ४७१७१)। यहाँ तक कि अपरार्क (पृ० १४-१५) ने देवपूजा में नरसिंहपुराण एवं देवप्रतिमा-प्रतिष्ठा में पौराणिक विधि की बात उठायी है। इसके अतिरिक्त अहिंसा, दान, तीर्थयात्रा एवं व्रतों पर बल दिया गया और यहाँ तक कह दिया गया कि अन्तिम दो (यात्रा, व्रत) वैदिक यज्ञों से अपेक्षाकृत अधिक लाभकर हैं। इस प्रकार के परिवर्तनों ने बौद्ध धर्म के प्रभाव को अवश्य कम कर दिया। पौराणिक गाथाएँ जातक गाथाओं से होड़ लगाने लगीं, देवों एवं अवतारों से सम्बन्धित कथाएँ लोगों के मनों को आकृष्ट करने लगीं। बाण (सातवीं शती का पूर्वार्ध) की कादम्बरी में आया है कि उज्जयिनी के लोग महाभारत, पुराणों एवं रामायण के अनुरागी,थे। श्री ओ' कोन्नोर ने इसे बौद्ध धर्म के ह्रास के चार प्रमुख कारणों में अन्तिम कारण माना है। (९) सातवीं शती से बुद्ध हिन्दुओं द्वारा विष्णु के एक अवतार कहे जाने लगे और दसवीं शती तक वे सम्पूर्ण भारत में इस प्रकार परिज्ञात हो गये। १९. अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः । एतं सामासिकं धर्म चातुर्वर्णोऽब्रवीन्मनः॥ मनु (१०।६४); अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। दानं दमो दया क्षान्तिः सर्वेषां धर्मसापनम् ।। याज्ञ० (१२२२); अथाष्टावात्मगुणाः। दया सर्वभूतेषु, क्षान्तिरनसूया शौचमनायासो मंगलमकार्पण्यमस्पृहेति । यस्यैते चत्वारिंशत्संस्कारा न चाष्टावात्मगुणा न स ब्रह्मणः सायुज्यं सालोक्यं गच्छति । गौतमधर्मसूत्र (८।२३-२५) । मत्स्य० (५२।८-१०) वेव एवं आचार की ओर निर्देश करके इन आठ गुणों को आत्मगुण कहता है-'वेदोऽखिलो धर्ममूलमाचारश्चैव तद्विवाम् । अष्टावात्मगुणास्तस्मिन् प्रधानत्वेन संस्थिताः॥' मत्स्य० (५२१७-८) । अत्रिस्मृति (श्लोक ३४-४१) ने भी इन्हीं आठ का उल्लेख किया है और इनकी व्याख्या की है, तथा हरदत्त ने (गौतम की व्याख्या में) इन आठ गुणों की परिभाषा में आठ श्लोक उदृत किये हैं। धम्मपद (श्लोक १३१) में आया है-'सुखकामानि भूतानि यो वण्डेन विहिंसति । अत्तनो सुखमेसानो पेच्च सो न लभते सुखम् ॥' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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