Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 4
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

View full book text
Previous | Next

Page 517
________________ ५०० धर्मशास्त्र का इतिहास जा सकता है कि जब वह आस्थावान् या कट्टर बौद्ध हो गया तो उसने लोगों को देव-पूजा से दूर कराने का प्रयत्न किया और सम्भवतः उस दिशा में कुछ कठोर नियम भी बनाये। प्रस्तुत अभिलेख पर डा० हुल्श का अनुवाद (का० ई० इण्डि०, जिल्द १, पृ० १६६) स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस विषय में अब हम आगे कुछ नहीं लिखेंगे। सम्राट हर्षवर्धन के विषय में ह्वेनसांग ने लिखा है कि उसने पंच देशों में पशु-मांस खाना वर्जित कर दिया और जीव-हिंसा कर्म के लिए प्राण-दण्ड निर्धारित किया (वाटर्स, पृ० ३४४)। यह भी अधिकांश लोगों को बुरा लगा होगा और सम्भवत: इसे लोगों ने धार्मिक उत्पीडन के रूप में ग्रहण किया होगा। यह द्रष्टव्य है कि हर्ष ने पशु-पक्षी-हत्या के विरुद्ध अपने उत्साह एवं शत्रु-विजय के लिए लम्बी सेना रखने के बीच में किसी प्रकार के संकोच का अनुभव कहीं किया। अन्य धर्मों के प्रति बरती जाने वाली सहिष्णुता एवं परस्पर सहयोग से रहने की प्रवृत्ति के सम्बन्ध में कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण उदाहरण दिये जा सकते हैं। लगभग ३६० ई० में श्रीलंका के बौद्ध राजा मेघवर्ण की प्रार्थना पर बोधगया में तीन मंजिलों वाले संघाराम के निर्माण की अनुमति हिन्दू गुप्त सम्राट् समुद्रगुप्त ने दी। देखिए 'अर्ली हिस्ट्री आव इण्डिया' (चौथा संस्करण, १९२४, पृ० ३०३-३०४, वी० ए० स्मिथ द्वारा लिखित), जहाँ इतिहासकार ने इतना और कहा है कि जब ह्वन-साँग बोधगया गया हुआ था तो उस संघाराम में एक सहस्र भिक्षु रहते थे। मुहम्मद उफी नामक एक व्यक्ति ने एक घटना का उल्लेख किया है। यद्यपि मुहम्मद गजनवी ने काठियावाड़ एवं गुजरात को कई बार लूटा और मन्दिरों को तोड़ा-फोड़ा एवं अपवित्र किया, तथापि हिन्दुओं ने आततायी एवं आक्रामक मुसलमानों एवं व्यवसायी मुसलमानों में व्यावहारिक अन्तर बनाये रखा। पारसियों द्वारा उकसाये जाने पर खम्भात के कुछ हिन्दुओं ने एक मस्जिद तोड़ डाली एवं कुछ मुसलमानों को मार डाला। उनमें से एक बचा हुआ मुसलमान सिद्धराज नामक राजा के पास गया और उसके समक्ष अपनी प्रार्थना रखी। वेश परिवर्तित कर राजा ने स्वयं सारी बातों का पता चलाया, अपराधियों को दण्डित किया और मुसलमानों को मस्जिद के पुनर्निमाण के लिए एक लाख बलोत्र दिये और खतीब को चार वस्त्र-खण्ड दिये, जो मस्जिद में सुरक्षित रख दिये गये। उफी का कथन स्वर्ग प्राप्त किया जा सकता है।' प्रो० रंगस्वामी आयंगर प्रेजेण्टेशन वाल्यूम (पृ० २५-३०) में श्री रामचन्द्र दीक्षितार ने तर्क उपस्थित किया है कि अशोक हिन्दू है, क्योंकि उसने 'स्वर्ग' की बात कही है। यह तर्क ठीक नहीं है, क्योंकि स्वयं अनुशासन में यह आया है कि इस अनुशासन के पूर्व ढाई वर्षों तक अशोक बुद्ध का उपासक मात्र था और इससे एक वर्ष से कुछ पूर्व वह संघ (भिक्षुओं के समुदाय) में पहुंचा और उपक्रमी अथवा उत्साही मोड बन गया (यः सम्भवतः भिक्ष बन गया)। आरम्भिक पालि ग्रन्थों में भी ऐसा आया है कि स्वर्ग से देवता लोग उतर कर बुरा का सम्मान करने आया करते थे। अतः 'स्वर्ग' शब्द के उल्लेख से कुछ अर्थ नहीं निकाला जा सकता। यदि पवित्र पालि ग्रन्थ रहे भी हों तो अशोक उनमें पारंगत नहीं था। उसने कहीं भी निर्वाण का उल्लेख नहीं किया है और न अपने अनुशासनों में कहीं 'चार आर्य सत्यों' या 'अष्टांगिक मार्ग' या 'प्रतीत्य-समुत्पाद' मामक बोगों के मौलिक सिद्धान्तों का उल्लेख ही किया है। सम्भवतः उसने नैतिक आचरण की शुद्धता के प्रयत्न से सम्बन्धित बौद्ध शिक्षा से आकृष्ट होकर ही उन सिद्धान्तों को स्वीकार किया था और यज्ञों को अस्वीकार किया था। ऐसा लगता है कि वह देवों में विश्वास करता था और चाहता था कि लोग स्वर्ग-प्राप्ति के लिए उपक्रम एवं उद्योग करें (देखिए छठा प्रस्तर-लेख, गिरनार-'परत्र च स्वग्ग आराधयन्तु' और इसी प्रकार के शब्दों के लिए १० वाँ प्रस्तर-लेख)। केवल इतना ही भावात्मक ढंग से उपस्थित किया जा सकता है। Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526