Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 4
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 441
________________ धर्मशास्त्र का इतिहास वामन से दो श्लोक उद्धृत किये हैं, जिनमें यह आया है कि व्यक्ति को स्नान एवं होम के उपरान्त कुछ शुभ पदार्थों को स्पर्श करके व्यवसाय आदि के लिए घर के बाहर जाना चाहिए। उपर्युक्त बातों के आधार पर वामनपुराण को ६०० एवं ९०० ई. के मध्य में कहीं रखा जा सकता है। देखिए ह० (इण्डि० हिस्ट्रॉ०, क्वा०, जिल्द ११, पृ० ११५-१३० एवं पी० आर० एच० आर०, पृ० ७६-९२)। वायुपुराण (आनन्दाश्रम संस्करण)-इसमें ११२ अध्याय एवं १०,९९१ श्लोक हैं। लगता है, ब्रह्माण्ड की भाँति यह भी चार पादों में विभाजित है, यथा-प्रकिया (अध्याय १-६), अनुषंग (अध्याय ७-६४), उपोद्घात (६५-९९) एवं उपसंहार (१००-११२)। वराह की भांति इसका भी आरम्भ 'नारायणं नमस्कृत्य' से होता है। दूसरे श्लोक में व्यास की प्रशस्ति गायी गयी है जो अन्य संस्करणों में नहीं पायी जाती। तीसरे श्लोक में शिवभक्ति की ओर निर्देश है। १०४ वा अध्याय बहुत-से संस्करणों में उपलब्ध नहीं है और 'गयामाहात्म्य' वाले अन्तिम अध्याय, कुछ लेखकों के मत से, पश्चात्कालीन परिवर्धन हैं। बहुत-से अध्यायों में शिवपूजा की ओर विशेष संकेत है, लगता है यह कुछ पक्षपात है, यथा २०१३१-३५, २४१९१-१६५, ५५ एवं १०१।२१५-३३०। सम्भवतः इसी पक्षपात को दूर करने के लिए अथवा साम्प्रदायिक सन्तुलन के लिए गयामाहात्म्य के अध्याय जोड़ दिये गये हैं। इतना ही नहीं, अध्याय ९८ में विष्णु की प्रशंसा है और दत्तात्रेय, व्यास, कल्की विष्णु के अपवतार कहे गये हैं, किन्तु बुद्ध का उल्लेख नहीं हुआ है। अध्याय ९९ सबसे बड़ा है, इसमें ४६४ श्लोक हैं और इससे में बहुत-सी प्राचीन परिकल्पित एवं ऐतिहासिक कथाएँ हैं। इस पुराण में कुछ ऐसे श्लोक हैं जो महाभारत, मनु एवं मत्स्य में पाये जाते हैं। इस पुराण में भी मत्स्य की भाँति धर्मशास्त्रीय सामग्री प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। यह पुराण प्राचीनतम एवं अत्यन्त प्रामाणिक पुराणों में परिगणित है; किन्तु इसमें कुछ पश्चात्कालीन क्षेपक एवं परिवर्धन भी हैं। ___ कल्पतरु ने इसके उद्धरण व्रत एवं नियतकाल के विभागों को छोड़ कर कतिपय अन्य विभागों में लिये हैं। श्राद्ध पर १६० श्लोक, मोक्ष पर ३५, तीर्थ पर २२, दान पर ७, ब्रह्मचारी पर ५ एवं गृहस्थ पर ५ श्लोक उद्धृत हैं। अपरार्क ने लगभग ७५ श्लोक (६० श्राद्ध पर तथा अन्य १५ उपवास, द्रव्य शुद्धि, दान, संन्यास एवं योग पर हैं) उद्धृत किये हैं। स्मृतिचन्द्रिका ने श्राद्ध, अतिथि, अग्निहोत्र एवं समिधा पर २४ श्लोक उद्धृत किये हैं। वायु ने गुप्त-वंश की ओर एक चलता संकेत कर दिया है। इसे पाँच वर्षों का एक युग विदित है (५०।१८३) । इसने मेष, तुला (५०।१९६), मकर एवं सिंह (जिसमें बृहस्पति भी है) की चर्चा (८२।४१-४२) भी की है। अध्याय ८७ में पूर्वाचार्यों के सिद्धान्तों के आधार पर गीतालंकारों का वर्णन किया है। ब्रह्माण्ड का अध्याय (३।६२) उसी विषय पर है जो वायु में है और श्लोक भी समान ही हैं। वायु में गुप्त-वंश की चर्चा आयी है और बाण ने अपने हर्षचति एवं कादम्बरी में इसका उल्लेख किया है अतः इसकी तिथि ३५० ई० एवं ५५० ई० के बीच में कहीं होगी। शंकराचार्य ने अपने वेदान्तसूत्र में एक श्लोक जिस पुराण से उद्धृत किया है वह वायुपुराण ही है (वे० सू० २।१।१=वायु० १।२०५), केवल 'नारायण' शब्द के बदले वायु में 'महेश्वर' रखा गया है। और भी देखिए वायु ४१२७-२८ वे० सू० १।४।१; वायु ९।१२० - वे० सू० १।२।२५। थोड़े-बहुत अन्तरों के साथ बात एक ही है। योगसूत्र (११२५)पर वाचस्पति ने तत्त्ववंशारदी में वायु (१२।३३ एवं १०।६५-६६) को उद्धृत किया है। देखिए, प्रो० दीक्षितार का लेख 'सम आस्पेक्ट्स आव दि वायुपुराण' (१९३३, ५२ पृष्ठों में, मद्रास यूनि०); ह० (इण्डि० हिस्ट्रॉ० क्वा०, जिल्द १४, पृ० १३१-१३९ एवं पी० आर० एच० आर०, पृ० १३-१७); श्री डी० आर० पाटिल का 'कल्चरल हिस्ट्री फाम दि वायुपुराण' (१९४६, पूना, पी-एच्० डी० अनुसंधान)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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