Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 4
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 505
________________ धर्मशास्त्र का इतिहास भादि) के पालन, राजकुमारों, मन्त्रियों, रानियों की तथा अन्य स्त्री - जाति की सम्बन्धिनियों की उपधा (कई प्रकार से चरित्र के विषय में खोज करना) द्वारा परीक्षा करने की सम्मति दी गयी है । १२२ ४८८ ऐसा प्रतीत होता है कि मध्यकाल के अधिकांश निबन्धकारों को कौटिल्य का अर्थशास्त्र उपलब्ध नहीं पा और इसी से उन्होंने राजधर्म के विषयों में पुराणों को अधिक उद्धृत किया है। किन्तु आरम्भिक पुराणों में (मणा मत्स्य आदि में ) कौटिल्य का उद्धरण पाया जाता है। देखिए प्रस्तुत लेखक का लेख 'कौटिल्य एण्ड दि मत्स्यपुराण' (डा० बी० सी० लॉ भेट ग्रन्थ, जिल्द २, पृ० १३-१५) । न्याय-व्यवहार, रिक्थ, वसीयत (उत्तराधिकार) आदि के बारे में भी पुराणों ने निबन्धकारों के दृष्टिकोण hat प्रभावित किया है । कृत्यकल्पतरु ने व्यवहार पर कालिकापुराण से साक्ष्य के विषय में एवं कतिपय वर्णों के लिए समुचित दिव्य परीक्षण विधियों के बारे में लगभग बारह श्लोक उद्धृत किये हैं ( पृ० ७९, २०५, २१०, २११, २२१, २३१, २३८ ) । बारह प्रकार के पुत्रों, पुनर्भव, स्वयंदत्त तथा राजा के उत्तराधिकारी और दास के विषय में कालिकापुराण से रा० नी० प्र० ( पृ० ३५ एवं ४० ) ने तीन श्लोक उद्धृत किये हैं । दत्तकमीमांसा ( पृ० ६०, आनन्दाश्रम संस्करण) एवं व्यवहारमयूख ( पृ० ११४, यद्यपि यहाँ ऐसा उल्लिखित है कि इस पुराण की दो तीन पाण्डुलिपियों में वे नहीं पाये जाते) ने कालिकापुराण के अध्याय ९१ के ३८ से लेकर ४१ श्लोक उद्धृत किये हैं (जिनमें गोद लिये जाने वाले पुत्रों और किस अवस्था तक ये गोद लिये जा सकते हैं आदि के विषय में संकेत हैं) । युग्म बच्चों में कौन बड़ा माना जाता है, इस विषय में मयूख ने भागवत ( ३ । १९।१८ ) पर की गयी श्रीवर की टिप्पणियाँ उद्धृत की हैं। भागवत में आया है कि जो पहले उत्पन्न होता है वह छोटा होता है। इसको लेकर व्यवहारमयूख ने कहा है कि पुराणों में स्मृतियों के विरोध में पड़ने वाली बातें बहुधा देखने में आती हैं। १२२. मिलाइए कौटिल्य (१।१०) का शीर्षक 'उपधाभिः शौचाशौचज्ञानममात्यानाम् ।' क्षीरस्वामी ने 'उपमा' की व्याख्या करते हुए कौटिल्य का यह शीर्षक उद्धृत किया है। १२३. यत्तु 'द्वौ तदा भवतो गभौं सूतिर्वेशविपर्ययात्' इत्यादिना भागवते पश्चाज्जातस्य ज्येष्ठ्यमुक्तं तदप्यनेन बाध्यते । पुराणेषु स्मृतिविरुद्धाचाराणां बहुशो दर्शनात् । व्य० म० पु० ९८ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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