Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 4
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 506
________________ अध्याय २५ भारत से बौद्ध धर्म के विलीन होने के कारण गत अध्याय के आरम्भ में कहा जा चुका है कि अपनी जन्म भूमि से बौद्ध धर्म के विलीन होने के जितने कारण रहे हैं, उनमें पुराणों का सबसे अधिक सहयोग था । भारत से बौद्ध धर्म का विलीनीकरण पूर्णरूपेण हो गया और यह सब अचानक हुआ। ऐसा क्यों हो सका ? यह एक जटिल समस्या है। इसके लिए किसी एक कारण को या थोड़े-से कुछ अन्य कारणों को मान लेना युक्तिसंगत नहीं जँचता । इस विलीनीकरण की महत्त्वपूर्ण घटना के पीछे भीतरी एवं बाहरी दोनों प्रकार के कारण बहुत लम्बे काल से परिचलित रहे होंगे। इनमें से कुछ कारण तो कम या अधिक मात्र कल्पनात्मक थे। पांचवीं शती के प्रथम चरण में फाहियान को बौद्ध धर्म अपनी उत्कर्षावस्था में दिखाई पड़ा था, किन्तु सातवीं शती के पूर्वार्ध में युवा च्वाँग ( ह्वेनसांग) की दृष्टि में वह अवनति के मार्ग पर अग्रसर हो रहा था । आठवीं शती के आरम्भ में बौद्ध धर्म की अधिक अवनति हो चुकी थी, जैसा कि इ-त्सिंग का अभिवचन है। भारत से बौद्ध धर्म के सर्वथा विलुप्त हो जाने के कारणों पर हम यहाँ संक्षेप में प्रकाश डालेंगे। इस विषय में हम कतिपय विद्वानों की उक्तियों की समीक्षा करने का प्रयास करेंगे। इस विषय पर कुछ विद्वानों के ग्रन्थ एवं लेख इस प्रकार हैं - ए० बर्थ कृत 'रिलिजंस आव इण्डिया' (जे० वुड द्वारा अनूदित, १८८२ ) ; 'पर्जीक्यूशन आव बुद्धिस्ट इन इण्डिया', राइज़ डेविड्स द्वारा (जर्नल आव पालि सोसाइटी, १८९६, पृ० ८७ - ९२ ) ; कर्न की 'मैन्युअल आव बुद्धिज्म' (जर्मन ग्रुण्ड्रिस में, पृ० १३३ - १३४ ) ; राइज़ डेविड्स कृत 'बुद्धिस्ट इण्डिया' (१९०३, पृ० १५७-१५८, ३१९); suso हिस्टा० क्वा० ( जिल्द ९, पृ० ३६१-३७१, जहाँ म० म० हरप्रसाद शास्त्री द्वारा दिये गये बौद्ध धर्म के विलोप के कारणों का उल्लेख है); 'दि सम आव हिस्ट्री' जो रेने ग्राउसेट द्वारा लिखित एवं ए० एच० टेम्पुल पैटर्सन द्वारा अनूदित है ( टावर ब्रिज प्रकाशन, १९५१ ) ; डा० आर० सी० मित्र कृत 'दि डिक्लाइन आव बुद्धिज्म इन इण्डिया' (१९५४, विशेषतः पृ० १२५ - १६४ ) ; देवमित्त धम्मपाल कृत 'लाइफ एण्ड टीचिंग आव बुद्ध' (जी० ए० नटेसन एण्ड कम्पनी, मद्रास, १९३८); 'बुद्धिज्म के २५०० वर्ष (प्रो० पी० वी० बापट द्वारा सम्पादित, १९५६ ) ; प्रो० केनेथ डब्लू० मार्गन द्वारा लिखित 'दि पाथ आव दि बुद्ध' ( पृ० ४७-५०, न्यूयार्क, १९५६ ) ; एन० जे० ओ० ' कोनर, राल्फ फ्लेचर सेयमूर द्वारा 'हाऊ बुद्धिज्म लेफ्ट इण्डिया' (चिकागो, १९५७ ) । भारत से बौद्ध धर्म के वास्तविक निष्क्रमण के कारणों पर विचार करने के पूर्व कुछ विशिष्ट बातों पर प्रकाश डाल देना आवश्यक है । बुद्ध अपने काल के व्यवहृत हिन्दू धर्म के केवल एक सुधारक मात्र थे । उन्होंने न तो इसका अनुभव किया और न ऐसा कर्तव्य ही समझा कि वे किसी एक नये धर्म का निर्माण कर रहे हैं और न तो उन्होंने हिन्दू धर्म का और न इसके सभी विश्वासों एवं व्यवहारों का परित्याग ही किया । बुद्ध ने अपने कुछ उपदेशों में वेदों एवं हिन्दू ऋषियों की ओर ससम्मान संकेत किया है। उन्होंने योग की क्रियाओं एवं ध्यान की महत्ता स्वीकार की है। उनकी शिक्षाओं में तत्कालीन हिन्दू विश्वासों में से कुछ तो ज्यों-के-त्यों आ गये हैं, यथा कर्मवाद एवं पुनर्जन्म-सम्बन्धी तथा जगत्-परिवर्तन सम्बन्धी सिद्धान्त । बुद्ध की शिक्षा का एक बहुत अंश उपनिषद् - काल के सिद्धान्तों का अंग मात्र था। जिन दिनों बुद्ध का जन्म हुआ था, जनता में विचारों एवं व्यवहारों की दो ६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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