Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 4
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 452
________________ वैदिक विधि की अपेक्षा पौराणिक विधि का महत्व ४३५ थे, प्रसन्न रखना चाहा और उन्हें बौद्धधर्म से दूर खींचने के लिए भरसक प्रयत्न किया, किन्तु तब भी द्विजों एवं शूद्रों में भेद रखा ही, केवल एक ही छूट यह दी कि वे द्विजों के समान ही पूजा कर सकते हैं और अपने कृत्यों एवं उत्सवों में (पौराणिक) मन्त्रों का प्रयोग कर सकते हैं। उदाहरणार्थ, पद्म ( ४|११०।२८६-२८९) ने भस्मस्नान की अनुमति देते हुए व्यवस्था दी है कि तीन वर्णों के पुरुष वैदिक मन्त्रों का प्रयोग कर सकते हैं, किन्तु शूद्रों के लिए पौराणिक मन्त्र ही निर्देशित हैं ( पद्म ४।११०।२९० - २९३ ) । पद्म में पुनः आया है कि शूद्र लोग न तो 'प्राणायाम' कर सकते हैं और न 'ओम्' का उच्चारण कर सकते हैं, वे 'प्राणायाम' के स्थान पर 'ध्यान' कर सकते हैं एवं 'ओम्' के स्थान पर 'शिव' कह सकते हैं ( पद्म ४।११०।३१६ ) । १७ क्रमश: कुछ विषयों में पौराणिक विधियां वैदिक विधियों से ऊपर उठ गयीं । अपरार्क ( पृ० १४ ) ने कहा है कि देवपूजा में लोगों को नरसिंहपुराण आदि में वर्णित विधि अपनानी चाहिए, न कि पाशुपतों या पांचरात्रों की विधि ( पृ० १५), यही बात मन्दिर में मूर्ति प्रतिष्ठा आदि के कृत्यों में भी करनी चाहिए ।" नरसिंहपुराण (६३।५-६ ) का कथन है कि 'ओम् नमो नारायणाय' मन्त्र से सभी प्रकार के पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं और इसके जप से व्यक्ति सभी पापों से मुक्ति पा जाता है तथा अन्ततोगत्वा विष्णु में विलीन हो जाता है ।" अग्निपुराण (अध्याय २१८) ने राज्याभिषेक की विधि का वर्णन किया है और अध्याय २१९ में लगभग ऐसे ७० पौराणिक मन्त्रों की व्यवस्था दी है, जो अभिषेक के समय कहे जाते हैं। और देखिए विष्णुधर्मोत्तर ( २।२१) जहाँ वैदिक मन्त्रों ( २।२२ ) के साथ १८४ पौराणिक मन्त्रों के प्रयोग की विधि है । राजनीतिप्रकाश ( पृ० ४९८३), नीतिमयूख ( पृ० १-४), राजधर्म कौस्तुभ ( पृ० ३१८-३६३) के समान मध्यकालीन निबन्धों ने वैदिक एवं पौराणिक मन्त्रों की समन्वित विधि विष्णुधर्मोत्तर से ली है। राजनीतिप्रकाश ( पृ० ४३०-४३३) ने प्रार्थनाओं एवं आशीर्वचनों के रूप में ऐसे मन्त्र उद्धृत किये हैं, जो विष्णुधर्मोत्तर में पाये जाते हैं । पद्मपुराण (४।९४।६८-९०) ने धनशर्मा नामक व्यक्ति की बड़ी मनोरंजक गाथा कही है। धनशर्मा के पिता केवल श्री मार्ग का अनुसरण किया और वैशाख स्नान जैसी पौराणिक व्यवस्थाओं का अनुसरण नहीं किया, इसीसे वे भयंकर एवं दुखी प्रेत हुए। कुछ श्लोक तो बड़े मनोरम हैं, 'मैंने अज्ञानवश केवल वैदिक कृत्य किये और मैं देव माधव के सम्मान में कभी वैशाखस्नान की विधि नहीं अपनायी, और न एक भी वैशाख मास की पूर्णिमा का व्रत रखा, जो ऐसे पापों के पेड़ को, जो पापकर्म आदि के इन्धन से उत्पन्न ज्वाला के समान कष्ट कारक है, काट देता । १७. प्राणायामश्च प्रणवः शूद्रेषु न विधीयते । प्राणायामपदे ध्यानं शिवेत्योंकारवर्णनम् ॥ (पद्म ४।११० ३१६) । १८. नरसिहपु० (अध्याय ६२ ) ने विष्णुपूजा की विधि का वर्णन किया है। अपरार्क ( पृ० १५ ) में यों आया है--' एवं प्रतिष्ठायामपि पुराणाद्युक्तैवेति कर्तव्यता ग्राह्या नान्या । तेषामेव व्यामिश्रधर्मप्रमाणत्वेन भविष्यपुराणे परिज्ञातत्वात् ।' १९. कि तस्य बहुभिर्मन्त्रैः कि तस्य बहुभिर्व्रतैः ओं नमो नारायमेति मन्त्रः सर्वार्थसाधकः । इमं मन्त्रं जपेद्यस्तु शुचिर्भूत्वा समाहितः । सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णु सायुज्यमाप्नुयात् ॥ नरसिंह० (६३।६-७ ) ; किं तस्य बहुभिर्मन्त्रfear जनार्दने । नमो नारायणायेति मन्त्रः सर्वार्थसाधकः ॥ विष्णुर्येषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः । येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः । वामनपु० ( ९४ । ५८-५९ ) ; मत्स्य का कथन है, 'ओं नमो नारायणेति मूलमन्त्र उदाहृतः ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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