Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 4
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 407
________________ धर्मशास्त्र का इतिहास ४१२४१४४ तक), ब्रह्माण्ड (३।७४।१०४-२४८), भागवत (११९२।९-१६, ९।२२।३४-४९ एवं १२।१७), गरुड़ (१४० एवं १४१।१-१२), भविष्य (३।३ एवं ४, यह वृत्तान्त व्यावहारिक रूप में सर्वथा व्यर्थ एवं निरर्थक है)। मत्स्य में आन्ध्र राजाओं की पूरी सची पायी जाती है और उसमें (२७३।१६-१७) आया है कि २९ आन्ध्र राजा ४६० वर्षों तक राज्य करेंगे, किन्तु वायु (९९।२५७-३५८) के अनुसार ३० आन्ध्र राजा ४५६ (४०६ ? ) वर्षों तक राज्य करेंगे। वायु (९९।३५५) एवं मत्स्य (३७३।१६) दोनों पुलोमा (पुलोवा, वायु में) को आन्ध्रों का अन्तिम राजा कहते हैं। टॉल्मी ने, जिसने अपनी पुस्तक 'भारत का भूगोल' सन् १५० ई० में प्रकाशित की, लिखा है कि उसके समय में टोलेमाइओज बैठान (पैठन) का राजा था (देखिए जे० आई० एच, जिल्द २२, १९४३, पृ० ८४, एपास्टिल्स आव कल्याण)। अतः स्पष्ट है कि ये ऐतिहासिक वृत्तान्त १५० ई० के उपरान्त ग्रन्थों में संगृहीत हुए होंगे। केवल चार पुराणों, यथा वायु, ब्रह्माण्ड, भागवत एवं विष्णु ने सामान्य रूप से कहा है कि गुप्त कुल के राजा गंगा की तलहटी में प्रयाग, साकेत (अयोध्या) एवं मगध में राज्य करेंगे, किन्तु गुप्त राजाओं के नाम विशेष रूप से नहीं आये हैं। गुप्त-सम्बन्धी पंक्तियाँ बहुत अंश तक अशुद्ध हैं। पाजिटर (डाइनेस्टीज़ आव दि कलि एज, पृ० १२) आदि ने तर्क दिया है कि समुद्रगुप्त एक महान् विजेता था, जैसा कि प्रयाग के स्तम्भ की प्रशस्ति से अभिव्यक्त है (फ्लीट, गुप्त इंस्क्रिप्शंस, सं० १)। अधिकांश लेखकों का मत है कि गुप्त-वंश का राज्य ई० ३२० में आरम्भ हुआ। ऐसा तर्क उपस्थित किया जाता है कि यदि पुराणों के शोधकर्ता या शोधकर्ताओं को समुद्रगुप्त की महत्त्वपूर्ण विजयों का पता रहा होता तो वे उसका नाम तो अवश्य ही लेते, अतः पुराणों का शोध कार्य ३२०-३३५ ई० में हुआ। पुराणों से सम्बन्धित बहुत बड़ा साहित्य निर्मित हो गया है। जो लोग इस विषय में अभिरुचि रखते हों अथवा जिन्हें विशेष जानकारी प्राप्त करनी हो वे निमोक्त कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों या लेखों आदि का अवलोकन कर सकते हैं-विल्सन की भूमिका (विष्णुपुराण का अंग्रेजी अनुवाद, जिल्द १, १८६४); एफ० ई० पार्जिटर के ग्रन्थ, यथा-'पुराण टेक्स्ट्स आव दि डाइनेस्टीज़ आव दि कलि एज' (१९१३), 'ऐश्येण्ट इण्डियन जीनियालाजीज' (आर० जी० भण्डारकर भेट ग्रन्थ, पृ० १०७-११३), 'इण्डियन हिस्ट्रारिकल ट्रेडिशन' (आक्सफोर्ड, १९२२); डब्लू० किर्फल के ग्रन्थ, यथा-'डास पुराण पञ्चलक्षण' (बॉन, १९२७), 'डाइ कॉस्मोग्रफी उर इण्डेर' (१९२०), 'भारतवर्ष' (स्टुटगार्ट, १९३१); वीज़ की कृति, यथा--'पुराण स्टडीज़' (पत्री कमेमोरेशन जिल्द, पृ० ४८२-४८७); हरप्रसाद शास्त्री द्वारा एशियाटिक सोसाइटी आव बंगाल के तत्त्वावधान में उपस्थापित पाण्डुलिपियों की विवरणात्मक पुस्तक-सूची (जिल्द ५, भूमिका) तथा उनका लेख (महापुराण, जे० बी० ओ० आर० एस०, जिल्द १५, पृ० ३२३-३४०); प्रो० बी० सी० मजुमदार का लेख (आशुतोष मुखर्जी रजत जयन्ती ग्रन्थ, ३, ओरिण्टेलिया, भाग २, पृ० ९-३०); डा० ए० बनर्जी-शास्त्री का लेख (ऐंश्येण्ट इण्डियन हिस्टॉरिकल ट्रेडिशन, जे० बी० ओ० आर० एस०, जिल्द १३, पृ० ६२-७९, जिसमें मैकडोनेल, पार्जिटर आदि के अप्रामाणिक वक्तव्यों को शुद्ध करने का प्रयास किया गया है); 'कैम्ब्रिज हिस्ट्री आव इण्डिया' (जिल्द १, पृ० २९६-३१८); विन्तरनित्ज़ की 'हिस्ट्री आव इण्डियन लिटरेचर' (इंगलिश अनुवाद, जिल्द १,पृ० २९६-३१८); प्रो० एच० सी० हज्रा की 'स्टडीज़ इन दिनि पुरानिक रेकर्ड्स आव हिन्दू राइट्स एण्ड कस्टम्स' (ढाका, १९४०), 'पुराणज़ इन दि हिस्ट्री आव स्मृति' नामक लेख (इण्डियन कल्चर, जिल्द १, पृ० ५८७-६१४); 'महापुराणज' (ढाका यूनिवर्सिटी स्टडीज़, जिल्द २, पृ० ६२-६९); ‘स्मृति चैप्टर्स इन पुराणज' (आई० एच० क्यू०, जिल्द ११, पृ० १०८-१३०); 'प्री-पुरानिक हिन्दू सोसाइटी राइट्स एण्ड कस्टम्स इंफ्लुएंस्ड बाई दि इकनामिक एण्ड सोशल व्यूज़ आव दि सैक्रेडोटल क्लास' (ढाका यूनिवर्सिटी स्टडीज़, जिल्द १२, पृ० ९११०१); 'इंफ्लुएंस आव तन्त्र ऑन स्मृतिनिबन्धज़' (ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द १५, पृ० २२०-२३५ एवं जिल्द १६, पृ० ३८-६२); 'पुराण लिटरेचर एज नोन टु बल्लालसेन' (जे० ओ० आर०, मद्रास, जिल्द १२, पृ० १२९ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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