Book Title: Dharmmangal
Author(s): Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 12
________________ . पं. ब्र.हेमचंदजी जैन द्वारा उपस्थित १९ जिज्ञासाएँ - जिज्ञासा १ - निश्चय-व्यवहार सम्यग्दर्शन का क्या लक्षण है? परिभाषा बताइए । जिज्ञासा २ - निश्चय-व्यवहार सम्यग्दर्शन एक साथ होते हैं या आगे पीछे? जिज्ञासा ३ - क्या सम्यग्दर्शन की पर्याय निश्चय-व्यवहार दो रूप होती है ? जिज्ञासा ४ - क्षायिक सम्यग्दृष्टि (श्रेणिक राजा का जीव जो वर्तमान में प्रथम नरक में हैं।) को निश्चय सम्यग्दर्शन है या व्यवहार या दोनों? जिज्ञासा ५ - औपशमिक क्षायोपशमिक, क्षायिक-इन तीनों प्रकार के सम्यग्दृष्टियों को क्या (आत्मानुभूति रहित?) आत्मविश्वास एक सदृश होता है? या तीनों के आत्मविश्वास में कुछ अंतर रहता है? जिज्ञासा ६ - प्रवचनसार गाथा ८० (जो जाणदि अरहतं....)एवं समयसार गाथा ३२० (दिट्ठि जहेव णाणं....) की श्रीमद् प.पू.जयसेनाचार्य विरचित तात्पर्यवृत्ति टीकाओं में क्रमशः करणलब्धिपूर्वक ‘अविकल्पस्वरूप की प्राप्ति' तथा 'भव्यत्व शक्ति की व्यक्तता' का स्वरूप बतलाया है। क्या इसका अर्थ मात्र आत्मविश्वास होना ही सम्यग्दर्शन माना गया है? जिज्ञासा ७ -(अ) प्रवचनसार गाथा ८० ता.वृ. टीका के प्रारंभ में लिखित 'अथ चत्ता पावारंभ (गाथा ७९) इत्यादि सूत्रेण यदुक्तं शुद्धोपयोगाभावे मोहादिविनाशो न भवति, मोहादि विनाशाभावे शुद्धात्म लाभो न भवति।'...का क्या अर्थ है? जिज्ञासा ७ - (ब)प्रवचनसार गाथा २४८ (दसणणाणुवदेसो ...) कर ता.वृ. टीका में कथित ननु शुभोपयोगिनामपि क्वापिकाले...श्रावकाणामपि सामायिकादि काले . शुद्ध भावना दृश्यते, तेषां कथं विशेषो भेदो ज्ञायत इति ।....बहुपदस्यप्रधानत्वा दाम्रवन निम्बवनवदिति।' का अर्थ खुलासा करें। जिज्ञासा ८ - प्रायोग्य लब्धि में, करणलब्धि में, तथा अनिवृत्तिकरणोपरांत होने वाले आत्मा के विश्वास में क्या अंतर है? जिज्ञासा ९ - देशव्रती श्रावक एवं अविरत सम्यग्दृष्टि के आत्मविश्वास में क्या कुछ फर्क होता है? क्यों कि आपके अनुसार आत्मानुभूति मुनि/ संयमी को ही होती है? जिज्ञासा १० - आपके हिसाब से मुनिराजों को ही आत्मानुभूति होती है तो गृहविरत श्रावकों (क्षुल्लक, ऐलक, आर्यिका)को भी स्वात्मानुभूति नहीं होती होगी? जिज्ञासा ११ - जैनों एवं जैनेतर मतावलम्बियों के आत्मा के विश्वास में क्या कुछ अंतर होता है? क्यों कि अन्य मतावलंबी भी आत्मा के होने में विश्वास रखते हैं। जिज्ञासा १२ - वह आत्मा जिसका कि जैनों(सम्यग्दृष्टियों) को विश्वास होता है क्या वह द्रव्यकर्म, नोकर्म (शरीर), भावकर्म, (मोह-राग-द्वेष) से रहित आत्मा होता है या इनके सहित होता है?

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