Book Title: Dharmmangal
Author(s): Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 69
________________ विद्वानों के अभिप्राय श्री जयकुमार क्षीरसागर, वालचंदनगर इस विशेषांक में आपने दो विद्वानों केएक ही विषय पर हुई पत्र-चर्चा समाज के सामने रखी है। विषय आसान लगा फिर भी उसकी व्याप्ति, महत्ता गंभीर है। आपका संपादकीय और ब्र. हेमचंदजी ने आसान भाषा में बताया है कि 'वस्तु, ज्ञान और वाणी (कथन) ये तीनों सत्तास्वरूप होते हुए असत्य ज्ञान में और उसके द्वारा कथन में मतलब व्यक्ति के अभिप्राय में होता है। चिंतन अपने अभिप्राय के अनुसार चलता है। अन्यों के अभिप्राय को समझने को तैयार ही नहीं होते अतः कितनी भी चर्चा कीजिए उत्तर अनिर्णित ही रहते हैं । एकमत बनना मुश्किल हो जाता है। उसमें अहं भी रुकावट डालता है। अतः समाज में दो भेद हो जाते हैं। हर कोई धर्म के लिए प्रयास करता है। परंतु जो मैं कहता हूँ वही सत्य है, के स्थान पर जो सत्य है वही मेरा है...आपकी यही भूमिका बहुत प्रशंसनीय है। श्रीमान बैनाड़ा जी का कार्य मैंने बारामती में देखा है। बहुत समर्पित व्यक्ति है। ब्र. हेमचंदजी ने निकाले प्रश्न और उनके जवाब उनके गहन अध्ययन के परिचायक है। श्री पं. निर्मल जी जैन, सतना - इस विशेषांक में आपका पुरुषार्थ सराहनीय है। इसे सदा सर्वदां बनाये रखने का प्रयत्न करती रहें । बस् ! प्रथमाचार्य महाराज के प्रति आपकी भक्ति और आपकी भावनाओं का आदर करता हूँ। श्री शांतिलाल जी बैनाड़ा, आगरा - सम्यक् सम्यक्त्व चर्चा विशेषांक पढ़ा आपने इस विशेषांक में मेरे अनुज भ्राता श्री रतना लाल जी के प्रश्न एवं उत्तरों का शास्त्रोक्त समाधान बहुत ही सुंदर व्यवस्थित ढंग से किया है। श्री पं.बाबुलाल जी जैन, अशोक नगर - धर्ममंगल का यह विशेषांक पढ़कर प्रसन्नता हुई। हमारे स्वाध्या मंडल के लोग बहुत रुचिपूर्वक इसे पढ़ रहे हैं। महिला मंडल भी पड़ रही हैं। मंदिरजी में रख दिया है। आपने बड़ी कृपा की जो यह अंक निकाला।

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