Book Title: Dharmmangal
Author(s): Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 76
________________ निजध्रुवचिदानंदात्मा को जानने की पद्धति (चार्ट क्र. 14) यह मैं शुद्धचिदानंदात्मा हूँ। यहाँ 'यह' इदन्ता' की प्रतीति है, इसलिए यह ‘प्रत्यक्षज्ञान' है। शुद्धात्मानुभव है, निर्विकल्प ज्ञान है। ___ 'वह' में ध्रुव चिदानंदात्मा था। यहाँ 'वह' (तत्ता) की प्रतीति है, इसलिए यह ‘स्मरणज्ञान' है, परोक्षज्ञान है, यह शुद्धात्मानुभव नहीं। जो मैं पूर्व में ध्रुवचिदानंदात्मा था, यहाँ यह+वह' के संकलन (इदन्ता और तत्ता के संकलन)की प्रतीति है इसलिए यह 'प्रत्यभिज्ञान' है। वह यह ध्रुवचिदानंदात्मा हूँ परोक्षज्ञान है, शुद्धात्मानुभव नहीं। जो जो जीव है वह वह यहाँ 'जो जो + वह वह' रूप व्याप्ति की प्रतीति है, इसलिए यह तर्कज्ञान' है, यह परोक्षज्ञान है। ध्रुवचिदानंदात्मा है। शुद्धात्मानुभव नहीं। मैं ध्रुवचिदानंदात्मा हूँ,क्यों कि यह पर्याय है। यहाँ 'साधन के द्वारा साध्य की प्रतीति है', इसलिए 'अनुमानज्ञान' है, यह परोक्षज्ञान है, साध्य ____ साधन शुद्धात्मानुभव नहीं। मैं ध्रुवचिदानंदात्मा हूँ। यहाँ ‘अंतरजल्प'रूप प्रतीति है, इसलिए यह ‘नयज्ञान ' है, परोक्षज्ञान है, शुद्धात्मानुभव नहीं। पर्याय को जानने की पद्धति / 'यह' मैं दुःखी हूँ। यहाँ 'यह' इदन्ता' की प्रतीति है, इसलिए यह प्रत्यक्षज्ञान' है। 'वह' मैं दुःखी था। यहाँ 'वह' (तत्ता) की प्रतीति है, इसलिए यह ‘स्मरणज्ञान' है, परोक्षज्ञान है। जो मैं पूर्व में दुःखी था, यहाँ वह+यह' के संकलन (इदन्ता और तत्ता के संकलन की) प्रतीति है इसलिए यह 'प्रत्यभिज्ञान' है, वह यह दुःखी हूँ। परोक्षज्ञान है। जो जो जीव शल्यसहित होता है यहाँ 'जो जो + वह वह' रूप व्याप्ति की प्रतीति है, इसलिए यह तर्कज्ञान' है, यह परोक्षज्ञान है। वह वह दुःखी होता है। मैं दुःखी हूँ,क्यों कि मेरे हृदय में शल्य है। यहाँ 'साधन के द्वारा साध्य की प्रतीति है', इसलिए 'अनुमानज्ञान' है, यह परोक्षज्ञान है। साध्य . साधन मैं दुःखी हूँ। यहाँ 'अंतरजल्प'रूपं प्रतीति है , इसलिए यह 'नयज्ञान' है, परोक्षज्ञान है।

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