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श्री डॉ. अनिल कुमार जी जैन, अहमदाबाद - ___ धर्ममंगल का 'सम्यक् सम्यक्त्व चर्चा' विशेषांक मिला । इन गूढ़ सैद्धातिक चर्चाओं को पढ़कर प्रसन्नता हुई। प्रकाशन के लिए आपको साधुवाद । यदि आपस में मिल बैठकर किसी अंतिम निर्णय पर विचार कर किसी अंतिम निर्णय पर सबकी सहमति होगी तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी। भाई श्री हेमचंद जी विज्ञान के विद्यार्थी रहे हैं और विद्वान भी हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद, बधाई स्वीकार करें। श्री माणिकचंद जी पाटनी, इन्दौर -
धर्ममंगल के 'सम्यक् सम्यक्त्व चर्चा' विशेषांक दो बार पढ़ा। सम्यक् दर्शन तो आत्म प्रतीति स्वरूप ही है। अतः श्री बैनाड़ा जी से अधिक समाधान की अपेक्षा है। जब भी इस विषय में जानकारी प्रकाति हो तो अवश्य भेजिए। इन दिनों निश्चित ही जो लेख, संपादकीय आप की पत्रिका में पढ़ने को मिल रहे हैं, इससे आपकी पत्रिका में निखार आया है। इसके लिए आपको बधाई , तथा आपकी यह पत्रिका दिनोंदिन पाठकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने, इन्हीं शुभ कामनाओं के साथ। श्री मनोहर एस. गौराण्णा, बेलगाँव - - धर्ममंगल के 'सम्यक् सम्यक्त्व चर्चा' इस विशेषांक को पढ़कर प्रमुदित हूँ। ऐसी चर्चा आजकल दुर्मिल हो गयी है। आपके हाथों ऐसी ही जिनवाणी की निर्मल सेवा होती रहे यही शुभकामना है। श्री ऐलक चेतन सागर जी - मनोहर थाना, झालावाड़ -
धर्ममंगल के 'सम्यक् सम्यक्त्व चर्चा' विशेषांक प्राप्त हुआ। उसका अध्ययन किया। पं. रतनलाल जी बैनाड़ा विद्वान हैं, परंतु अध्यात्म ग्रंथ के रहस्य को खोलना चाहिए। आज के अधिकांश साधुओं में भी यही बात देखने को मिलती है । इंजिनियरिंग में थ्योरी और प्रैक्टिकल होते हैं, उसी प्रकार जैन धर्म में भी थ्योरी और प्रैक्टिकल होते हैं। अर्थात् पहले चारों अनुयोगों द्वारा उनकी गहराई समझी जाती है, जैन दर्शन सूत्रों का , सिद्धान्तों का ज्ञान व श्रद्धान किया जाता है, तत्पश्चात् दीक्षा लेकर सिद्धान्तों पर अमल करते हुए समतापूर्वक एवं शांतिपूर्वक आत्मसाधना की जाती है। श्री डॉ. पी.बी.पनवेलकर, वर्धा -
धर्ममंगल के 'सम्यक् ॥म्यक्त्वं चर्चा' इस पुस्तिका के रूप में एक ऐसी ५ . है, जिससे हम जैसे अल्पज्ञानी के भी ज्ञान का अंशतः उघाड़ होता है। आपने निष्पक्ष भाव से जो स्वस्थ वीतराग चर्चा प्रस्तुत की है, आपका अभिनंदन ! दोनों विद्वानों ने आगम के