Book Title: Dharmmangal
Author(s): Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 72
________________ ७२ अनेक संदर्भ प्रस्तुत किये हैं। पं. बैनाड़ा जी ने जिस विश्वास की बात की है, मैं सोचता हूँ कि विश्वास तो तब होता है जब अनुभव होता है। सात कर्म प्रकृतियों के अभाव से तथा द्रव्य कर्म, नोकर्म, भावकर्म विरहित शुद्धात्मा में ही स्वभाव के आश्रय से यह प्रतीति होती है। आ.समंतभद्र के अनुसार सामायिक करते समय भी श्रावक को वस्त्रों का उपसर्ग हुए मुनि जैसा होता है। कारण उस समय बायाभ्यंतर परिग्रहत्याग होता है। अतएव अविरत सम्यग्दृष्टि की प्रतीति ही आत्मानुभूति है। 'निजशुद्धात्मानुभव' पुस्तक पू. वीरसागरजी की अमोल देन है।आपने यह पुस्तक भेजकर हम अल्पमतियों का बड़ा ही उपकार किया है। श्रीमती विमला जैन, कटनी - धर्ममंगल का 'सम्यक् सम्यक्त्व चर्चा' विशेषांक प्राप्त हुआ। आपकी लेखनी पाठकों को प्रभावित करती है। साथ ही शास्त्र सम्मत बातें/प्रकरण सुश्रावक को दृढ़ निश्चयी भी बनाती है। आपके विचार प्रेरणास्पद तथा जैन आस्था को बलवती बनाने में एकदम सक्षम हैं। यह कृति निश्चय ही साधना पथ पर अग्रसर होने में सहयोगी होगी ऐसा विश्वास है। शुल्क आदि भेजने हेतु निवेदन धर्ममंगल का वार्षिक शुल्क रु.१००/-, आजीवन डिपॉझिट रु.११००/-, संरक्षक डिपॉझिट रु. ५००१/- म.ऑ.,डी.डी. या कोअर अकौंट द्वारा भेज सकते है। देशभर में कहीं से भी पंजाब नैशनल बैंक द्वारा हमारे कोअर अकौंट नंबर 450800 210000 2842 है। कृपया शुल्क रकम+२०रु. बैंक कमिशन सहित भेजिए। यह रकम आप संपादिका,धर्ममंगल, लीलावती जैन क नाम से भेज सकते हैं । रकम भेजने के बाद हमें आपका नाम-पता,(पोस्ट पीन कोड सहित) रकम, भेजने की ता., आपका फोन नं.एवं किस हेतु से रकम भेजी है इसका खुलासा भेजना अत्यावश्यक है। -लोकल चेक के अलावा बाहर गाँव के चेक स्वीकार नहीं किये जाते । आजीवन एवं संरक्षक डिपॉझिट के व्याज पर अंक मिलता है। अंक बंद.पटने पर डिपॉझिट वापिस किया जाने की गैरंटी है। ___- संपादिका

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