Book Title: Dharmmangal
Author(s): Lilavati Jain
Publisher: Lilavati Jain

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Page 14
________________ पं.रतनलालजी बैनाड़ा का पत्र- पं.हेमचंदजी के नाम ब्र. हेमचंद्र जी सस्नेह जयजिनेंद्र, आपका पत्र दि.२४ मई २००५ प्राप्त हुआ। व्यस्तता के कारण जवाब कुछ देरी से दे रहा हूँ। वास्तविकता तो यह है कि आगम को ठीक ढंग से न समझ पाने के कारण ऐसी भ्रांतियाँ स्वाभाविक हैं। दो वर्ष पूर्व भी पं. बाबुलालजी इंजिनियर कोटा वाले, पू. मुनिश्री सुधासागरजी महाराज के कोटा चातुर्मास में उनके निकट आये थे। पू. मुनिश्री ने लगातार कई सप्ताह तक उनकी गलत मान्यताओं का निराकरण कर उनकी भ्रांतियों को, आगमविरूद्ध मान्यताओं को ठीक किया था। टोडरमल स्मारक के संबंधित विद्वानों की सब की, लगभग वे ही एक सी गलत धारणाएँ हैं। आपने भी अपने पत्र में भी उन्हीं मान्यताओं को जिज्ञासा के रूप में लिखा है। मैंने यद्यपि समस्त जिज्ञासाओं का संक्षिप्त समाधान संलग्न पत्र में दिया है,परंतु इन सभी जिज्ञासाओं पर तो खुलकर स्पष्ट विवेचना होनी चाहिए। मुझे अत्यंत आश्चर्य है कि जिनवाणी के संबंध में अपनी मान्यताओं के समक्ष, पू. आचार्यों के शास्त्रीय प्रमाणों का अपलाप क्यों किया जा रहा है? जिनवाणी भक्त एवं धर्मपिपासु मुमुक्षु का तो कर्तव्य यह होना चाहिए कि आगम में अपनी गलत मान्यता साबित होने पर तुरंत ही उस मान्यता को जिनवाणी के अनुरूप बना लें। मेरी भावना तो यह है कि हम सब एवं आप सब विद्वात् गण, चातुर्मास के इन दिनों में पू.आ.विद्यासागरजी महाराज के समक्ष या पू. मुनिश्री सुधासागरजी के या पू. मुनिश्री प्रमाण सागरजी के समक्ष उपरोक्त सभी जिज्ञासाओं के विस्तृत समाधान हेतु सप्रमाण उपस्थित हो। और अपनी मान्यताओं को आगमानुसार परिवर्तन करने का अभिनव प्रयास करें। यदि पक्ष छोड़कर ऐसा किया गया तो सभी सैद्धांतिक भूलों का निराकरण हो जायेगा तथा सामाजिक एकता को भी ऐतिहासिक संबल प्राप्त होगा। __मैं आपसे कभी मिला तो नहीं हूँ, परंतु आपके ज्ञान की चर्चाएँ अक्सर सुनता रहता हूँ। आप जिज्ञासु हैं, ऐसा कहा जाता है। मुझे पूर्ण आशा है कि आप मेरे उपरोक्त सुझाव को उचित मानते हुए इसी चातुर्मास में पू. आचार्यश्री आदि के निकट बैठने को तिथियाँ निश्चित कर मुझे सूचित करेंगे। - यह भी निवेदन है कि पत्र का उत्तर बिंदुवार तथा आर्ष आगम प्रमाण सहित देने का कष्ट करें। मंगल भावनाओं सहितरतनलाल बैनाड़ा, १/२०५, प्रोफेसर कालोनी, आगरा - २८२ ००२

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