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६४ प्रश्न-सासादन गुणस्थान विपरीत अभिप्राय से दूषित है। इसलिए इसमें सम्यग्दृष्टिपना कैसे बनता है? उत्तर-नहीं, क्यों कि पहले वह सम्यग्दृष्टि था इसलिए भूतपूर्व न्याय की अपेक्षा उसके सम्यग्दृष्टि संज्ञा बन जाती है। वास्तव में सासादन दृष्टि का सही अर्थ है, आसादना सहित जिसकी समीचीन दृष्टि होती है,वह सासादन सम्यग्दृष्टि कहलाता है।'
यहाँ भी इतना विशेष है कि पं. टोडरमलजी के समक्ष श्री धवला आदि ग्रंथों का प्रकाशन न होने के कारण, मोक्षमार्ग प्रकाशक तथा उनके द्वारा रचित अन्य ग्रंथों में बहुत से ऐसे प्रसंग पढ़ने में आते हैं जो सूक्ष्म विवेचन करने वाले श्री धवला आदि ग्रंथों के अनुसार आगम सम्मत नहीं है। कुछ पक्षपाती लोग श्री धवला आदि ग्रंथों के अर्थ को मोक्षमार्ग प्रकाशक के अनुसार तोड़ मरोड़कर अपनी स्थूल बुद्धि का परिचय देते हैं। जबकि उनको धवला आदि ग्रंथों के अनुसार मोक्षमार्ग प्रकाशक में आवश्यक सुधार कर अपनी बुद्धि का परिमार्जन करना मोक्षमार्ग में श्रेयस्कर है।
- १/२०५, प्रोफेसर कालोनी, आगरा- २८०००२ धर्म्यध्यान-आगम के आलोक में
एदम्हि रदो णिच्चं संतुट्ठो होहि णिच्चमेदम्हि। एदेण होहि तित्तो होहदि तुह उत्तम सोक्खं ।।.....समयसार २०६॥ मोक्खपहे अप्पाणं ठवेहि तं चेव झाहि तं चेय। तत्थेव विहर णिच्चं मा विहरसु अण्णक्षदव्वसु॥.....समयसार ४१२॥ जो सव्वसंगमुक्को झायदि अप्पाणमप्पणो अप्पा। ण वि कम्मणोकम्मं चेदा चिंतेदि एयत्तं॥ ..... समयसार १८८॥ अप्पाणं झायंतो दंसणणाणमओ अणण्णमओ। लहदि अचिरेण अप्पाणमेव सो कम्मपविमुक्कं।। .....समयसार १८९॥ अहमेक्को खलु सुद्धो णिम्ममओ णाणदंसणसमग्गो। तम्हि ठिदो तच्चित्तो सव्वे एदे खयं णेमि॥.....समयसार ७३॥ . णाहं होमि परेसिंण मे परे संति णाणमहमेक्को । (१९१) इदि जो झायदि झाणे अप्पाणं हवदि झादा॥......प्रवचनसार २०४॥ जो एवं जाणित्ता झादि पर अप्पगं विसुद्धप्पा। (१९४) सागारोऽअणगारो खवेदि सो मोहदुग्गंठिं। ..... प्रवचनसार २०७॥ जो इच्छइ णिस्सरि, संसारमहणवाउ रुंदाओ। कम्मिंधणाण डहणं सो झायइ अप्पयं सुद्ध।..... मोक्षपाहुड २६॥