Book Title: Dharmaratnaprakaranam
Author(s): Shantisuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 112
________________ धर्मरaप्रकरणम् ॥ ५० ॥ हरिसिएण उग्घाडियं भूमिगिहं दत्तेण । उवलद्धा करंडिया । वाइओ पट्टओ । तत्थ किर लिहियमेयं - " अस्थि पच्छिमदिसाए रयणायरस्संतो गोयमदीवो नाम दीवो । सो अइकखडफासपासाणपउरभूमितलो, रयणतणचारिसुरभिपउरो य । ताओ पुण सुरभीओ न सर्हति माणुसदंसणंपि । अओ तत्थ सोमालकरीसभरियभूरिजाणवतेहिं गम्मइ । पसलदुमच्छायासु करीसं पत्थरिज्जइ । अप्पणा अन्नत्थ दूरे आवासो कीर । तओ सुविसत्थाओ सुरभीओ तेसु छायारुक्खेसु करीसमिउफासलुद्धाओ मज्झण्डकाले निसासु य उवविसंति छगणं च मुंचति । तओ तासु गयासु पभाए छगणमत्रत्थ नेऊण पिंडा कीरंति । परिसुकपिंडयाण जाणवत्ताणि भरिज्जति । स गिहमाणिज्जति । पज्जालिएसु पिंडएसु पहाणरयाणि पाउन्भवंति । तओ अपरिमिया रिद्धी वित्थरह । सव्वत्थ 1 गुती कायन्त्रा । एवं सव्वं परिणामसुंदरं होइ " त्ति लिहियमेयं दण चितियं दत्तेण सुंदरमेयं, किं तु न मए पुव्वयरमेयमवलोइयं । संपद अच्चतनिद्धणेहिं न तत्थ गंतुं तीरइ, न य कोह दरिद्दाणमुद्धारए देह । मंतगुती य आइट्ठा। कहिएवि सन्भावे न कोई पत्तियह, ता किमेत्थ पत्तयालंति | अहवा करेमि ताव गहिल्लचेहयं ता मम कोइ किंपि अणुकंपाए वियरेज्जत्ति । तओ बुद्धी अस्थि विभो नत्थित्ति झिङ्खतो तियचउक्कचच्चराइस परिहिंडइ । जंपि तंपि पुच्छिओ एवं चेव पडिभणइ । तओ गहिल्लो दत्तोति पसिद्धं सव्वनयरीए । अत्थनासेण उम्मत्तीभूओ वराओ दत्तोत्ति सुयं नराहिवेण । अत्थं दाऊण पउणीकरेमि तं महाणुभावंति चितिऊणाणाविओ एसो पुच्छिओ य--भो दत्त ! किमेयं जंपसि ? सो भणइ - बुद्धी अस्थि विभवो नत्थि । तओ राइणा मा एवमुवसु, गिन्ह विहवं जत्तिएण पओयणंति बितेण दरिसियं भंडागारं । तओ तुड्डेण लक्खमेतं गहियं दत्तेण भणियं चएत्तिएण चैव मे पओयणंति । उवरओ झिक्खियन्त्राओत्ति परितुट्टो राया । दत्तेमवि गहिया गोयमदीवगमण विहिनू निज्जामगा । स्वोपज्ञवृत्तियुक्तम् ।। ५० ।।

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