Book Title: Dharmaratnaprakaranam
Author(s): Shantisuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 151
________________ य भयवं ! भोओ भत्रभमणाओ तुहागओ सरणं । नियदिक्खादाणेण करेहि ता पहु ! पसायं मे ॥ २१ ॥ भणइ गुरू कोसि तुमं ? किं वा पव्वयसि ? सोवि पडिभणइ । सुपसिद्धो सिबभूई भिच्चोहं नयरनाहस्स ॥ २२ ॥ तो कह रायाणमपुच्छिऊण पव्त्राविमो ओ भइ | तो खाइ तुम्ह पुरओ दिक्खं अहयं सयं गिन्हे ॥ २३ ॥ इय भणिय जाव लोयं एसो सयमेव काउमारद्धो । ता दिक्खिओ गुरूहिं अणवत्थादोसभीएहिं ॥ २४ ॥ बलिमडाए राया उप्पव्वाविस्सइति संकाए । सव्वेवि समुच्चलिया पत्ता देसतरं अन्नं ॥ २५ ॥ कालेज पुणो रन्ना भक्तिव्भरनिव्भरेण आहओ । रहवीरपुरं नयरं कण्हायरिएहिं सह पत्तो ॥ २६ ॥ दंसणहेउं तत्तो आहूओ निययमंदिरं रना । संमाणियो य सुंदरकंबलस्यणप्पयाणेण ॥ २७ ॥ आलोइयंमि गुरुणा भणिओ किं पुण इमं महामोल्लं । गहिति सो पर्यपड़ दक्खिन्नाओ नरिदंमि ॥ २८ ॥ तस्स परोक्खस्स पुणो कथा निसेज्जाओ तंमि मुणिवइणा । अपत्तिएण गहिओ सिवभूई तो मणे मयं ॥ २९ ॥ अह अनया कयाई उवहिवियारो गुरूहिं पारद्धो । जिणकप्पथेरकप्पे पडुच्च एवं सुयविहाणा ||३०|| जिण बारस स्वाई थेरा चोदसरूविणो । अज्जाणं पनवीसं तु अओ उड़ढमुवग्गहो ॥ ३१ ॥ दुगतिगचउक्कपणगं नवदसएकारसेव स। एए अप्पा उवहिम्मि उ हुंति जिणकप्पे ॥ ३२ ॥ सोउं तं सिवभूई जंपइ एसेव उत्तमो कप्पो । काउं जुज्जइ परलोसाहणे बद्धकच्छाणं ॥ ३३ ॥ ता एस किन्न कीरइ संपड़ साहूहि मोबखकखी हिं । मोत्तूण वत्थपत्ताइसंगहं जिणवराविहियं ॥ ३४ ॥ जकिर गुरुस्सलिङ्ग तं चिय सीसस्स जुज्जए काउं । लोएवि लिङ्गिगो जं नियनियदेवाणुरुवंति || ३५ || गुरुणा पडिभणियंतिथंकराणु चिन्न किरि अम्हारिसा कह कुर्णति । किं करिवरपल्लाणं तरंति नणु रासभा वोढुं ॥ ३६ ॥ पढमे श्चिय संघयणे सो कीर गरुपसत्तसारेहिं । केवलमुबवूह चिय कायव्वा तस्स अम्हेहिं ।। ३७ ।। तित्थंकराणुकारं काउं न हि तरह पागओ पुरिसो

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