Book Title: Dharmaratnaprakaranam
Author(s): Shantisuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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भत्तिबहुमाणसारं कुणइ अणूणं च नियकिरियं ॥ ७६ ॥ कत्तियचाउम्मासे सूरी भोत्तूग निद्धमहराई । पाऊण मज्जमहिय सुत्तो नीसट्ठसव्वंगो ॥ ७७ ॥ आवस्सगं कुणंतो पंथगसाहूवि खामणनिमित्तं । सोसेण तस्स पाए घट्ट विणयनयनिउणो ॥ ७८ ॥ तो कुविओ रायरिसी जंपद को एस अब्ज निल्लज्जो । पाए आघटुंतो निहाविग्धे मह पयट्टो ।। ७९ ॥ रहुँ दळूण गुरुं संविग्गो पंथगो भणइ एवं । चाउम्मासियखामणकए गए दुमिया तुम्मे ।। ८० ॥ ता एग अवराह खमह न काहामि एरिसं बीयं । इंति खमासील चिय उत्तमपुरिसा जओ लोए ॥ ८१॥ इय पंथगमहुरगिरं आयनंतस्स तस्स सरिस्स । सूरुग्गमे तमं पिव अमाणं दरमोसरियं ॥८॥ परिनिदिऊण सुइरं अप्पाणं जायसंजमुज्जोओ। खामेइ पथगं पिह पुणो पुणो सुद्धपरिणामो ॥८॥ दुइयदिणे रायाण आपुच्छिय दोवि सेलगपुराओ। निक्खता पारद्वा उग्गविहारेण विहरेउं ।। ८४ ॥ अवगयतव्वुत्ता संपचा सेसमंतिमुणिणोवि । विहरिय चिरं सुविहिणा आरूढा पुंडरीयगिरि ।। ८५ ।। थावच्चापुत्तो इस काउं संलेहणं विहुयकम्मा। उप्पन्ननिमलनाणा सिद्धा परिनिव्वुया सवे ॥ ८६ ॥ इय मूलगुणविसुद्धो मोसम्वो नियगुरू न गीएहिं । सम्ममणुवत्तियव्वो सुसाहुणा पंथगेणेव ।। ८७ ॥
॥शेलकराजर्षिकथानकं समाप्तम् ॥ व एवं कुर्वतः साधोर्गुणमाहएवं गुरुबहुमाणो कयन्नुया सयलगच्छगुणवुड्डी । अणवस्थापरिहारो हुँति गुणा एवामाईया ॥१३३॥
'एवं' गुरुमनुश्चता सन्मार्गाद्यमं च कास्यता यतिना 'गुरुबहुमानः' मानसप्रीत्यतिशयः कृतो भवति । तथाहि-द्विविधो
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