Book Title: Dharmaratnaprakaranam
Author(s): Shantisuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 164
________________ धर्मरत्न प्रकरणम् ॥ ७६ ॥ एमाइउत्पिडिउत्तिभावणा सुट् टु निच्छिओच्छाहं । कलिङणं धावच्चा अणुमन्नइ तं अकामावि ||२४|| गंतुं केसनमूलं कहेइ सयलंपि पुत्तवृत्तं । मग्गइय रायचिंधे दिक्खामहिमाकरणहेउं ॥ २५ ॥ तुट्टो भणड़ य कन्हो धन्नो सो अस्स निच्छओ धम्मे । ता चिट्ठ नव्या तं दिक्खामहिमं भलिस्सामि ||२६|| गंतूण य तग्गेहं तीसे पुत्तं सयं भणइ कन्हो । भुंजसु वच्छ ! सुद्दाई भिक्खाचरिया महादुक्खा ||२७|| सो पडिभणह महापहु ! भयाभिभूयाण केरिसं सोक्खं । ता सव्वभयपणासी धम्मो श्चिय जुज्जए काउं ॥ २८ ॥ . रायाह - महबाहुच्छायाएं वच्छ ! वर्ततस्स ते भयं नत्थि । अह अत्थि ता निवेयसु जेण निवारेमि तं तुरियं ॥ २९ ॥ इयरेण बुतं - जड़ एवं ता ईतं जरं च मच्चुं च मे निवारेहि । जेण सुनिध्युयहियओ भोगसुहं सामि ! माणेमि ॥ ३० ॥ भणइ नरिंदो सुंदर ! दुव्वारमिमं दुगंपि जियलोए । सुरनाहोवि न एए वारइ अम्हारिसो रे || ३१ || जओ - कग्मवसेण जियाणं जरमरणाई हवंति संसारे | इयरो भइ अओ च्चिय कम्माह निहंतुमिच्छामि ॥ ३२ ॥ नाऊण निच्छयं से नरनाहो भणह साहु साहुत्ति । पव्वयसु धीर ! एवं पुज्जंतु मणोरहा तुज्झ ॥ ३३ ॥ कारेइ केसवो तो उग्घोसणयं पुरीए सच्याए । संसारभउविग्गो थावच्चानंदणी धनो ॥ ३४ ॥ पच्चयइ मोक्खकामी जड़ ता अम्भोवि कोवि पव्वयह। तो अणुमन कन्हो वह य तर्त्ति कुटुंबस्स ।। ३५ ।। सोऊन घोसणं तं सहस्समेगं उबट्टियं तत्थ । रायाईण सुयाणं थावच्चापुत्तनेहेण || ३६ || निवखमणमहामहिमं राया तेसि करेइ सव्वेसिं । इयथावच्चापुतो सहस्ससहिओवि निक्खतो ॥ ३७ ॥ जाओ चोदसपृथ्वी जिणेण सो चैव तस्स परिवारो । दिली तो उम्गतवी विहरइ महिमंडलं एसो ॥ ३८ ॥ विहरंतो संपत्तो कयाह सेलगपुरम्मि सो भयर्थ । पंचसयमंतिसहियं सेलगरायं कुइ सं ||३९|| तत्तोय विरमाणो पत्तो सोगंधिया नयरीए । तत्थवि पहाणसेट्ठि सुदंसणं सावगं कुणड़ ॥ ४० ॥ सो पुण सुथपरिचायगधम्मे स्वोपज्ञवृत्तियुक्तम् ।। ७६ ।।

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