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धर्मपरी०
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ढाल सोलमी.
रंग मोहोलमा राधिका, मुखकमल निहाले ॥ दरपण लेइ मुख देखती, सीगार संजाले - ए देशी.
मालव देश मांहिं जली, नयरी उजेली तेह || श्रीब्रह्मा राज करे तिहां, श्रीमती राणी जेह ॥ १ ॥ चार मंत्री चतुर जला, बलि बृहस्पति प्रल्हाद ॥ नमुचि मिथ्याते आगलो, जैनशुं करे बहु वाद ॥ २ ॥ गोख उपर बेठा थका, जाता दीवा लोक ॥ नरपति मंत्रीने कड़े, किदां जाय बे ए थोक ॥ ३ ॥ बलि प्रधान तव बोली, सांजल स्वामी राय ॥ श्रावकलोक यति घणा, साधु वंद जाय ॥ ४ ॥ श्री ब्रह्मा नृप दरखीयो, जतिवर वांदण जाय ॥ चार मंत्री साथे लीया, परिवार पार न पाय ॥ ए ॥ प्रथम कथा तुमे सांजलो, उजेली वन मांदे ॥ अकंपनाचार्य यावीया, सातसें मुनि बे सहाए ॥ ६ ॥ ज्ञानी गुरु ते श्रुति जला, शिख दीये मुनिराय ॥ जो राजपुरुषशुं बोलशो, तो विघन होशे एणे ठाय ॥ ७ ॥ गुरु वचन मनमां धर्यां, धरी ध्यान तेथे ठाम ॥ राजा तव तिहां घ्यावीयो, मुनि वांद्या नृपे ताम ॥ ८ ॥ ते साधुने बोलावीया, उत्तर वलतो न दीध ॥ ढोर अज्ञानी बापडा, मंत्रीए निंदा कीध ॥ ए ॥ राजा तव पाढो वढ्यो,
खंग १
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