Book Title: Dharm Parikshano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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ते दीजीए, राण वावे मुक्तिनो पंथ हो ॥१॥ ए श्रांकणी ॥ दान नविक जन दीजीए, राण दाने दोलत थाय हो ॥ जश कीरति श्ह लव लहे, रा० परनव मुगति जाय हो ॥ दा॥२॥ अजयदान नर जे दीए, रा तेहने नय नवि कोय हो ॥ श्द नव परनव जाणजो, रा० शिवपुरनां सुख होय हो ॥ दा० ॥३॥ आहार उषध वस्त्रे करी, राग थिर धरमे थापीजे हो ॥ धरम थयो नाव दानथी, रा० आठ करम कापीजे. हो ॥ दा० ॥४॥ कर नीचा जिनवर करे, रा० अन्नदान परधान हो । तेहनी उपम कुण कहुं, रा० दीजे देश मान हो ॥ दा० ॥५॥ यतः-ददस्वान्नं ददखान्नं । ददखान्नं युधिष्ठिर ॥
अन्नदःप्राणदो लोके । प्राणदः सर्वकामदः ॥१॥ रोगियो नेषजं देयं । रोगा देह विनाशकाः॥
देहनाशे कुतो शानं । ज्ञानानावे न निवृत्तिः ॥२॥ वस्त्र विविध प्रकारनां, रा० हित करी थापे हाथे हो ॥ तेहy फल सद्गुरु कहे, रा० बत्र धरावे माथे हो ॥ दा॥६॥ दान त्रण एम सांजली, राण पृथ्वीनापति प्रतिबुक हो । विश्वनति पण तिहां थयो, राण व्रतधर श्रावक शुद्ध हो ।

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